Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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३८२
३६५
३६६
४२५
( २१ ) नन्दमंत्री शकटाल
३६२ अर्ध फालक सम्प्रदाय संघ भेद के मूल कारण वस्त्र पर विचार
३६४ भ० महावीर तथा उनके पूर्व वस्त्र की स्थिति पार्श्वस्थ-शिथिलाचारी साधु भ० महावीर के पश्चात् वस्त्रकी स्थिति
४०६ अचेलक और नाग्न्य के अर्थ में परिवर्तन
४१६ मंखलिपुत्त गोशालक का जीवन वृत्त गोशालक और परिव्राजक मस्करी और गोशालक
४३४ क्या गोशालफ पार्थापत्यीय था
। ४३६ महावीर और गोशालक के सम्मिलन का उद्देश्य
तथा पारस्परिक आदान प्रदान श्राचार सम्बन्धी नियम
४४४ मिलन का उद्देश्य
४५४ पार्थापत्यीय और गोशालक श्राजीविक और दिगम्बर
४६३ नग्नता प्राचीन परम्परा से सम्बद्ध है संघ भेद का काल
४८४ संघ भेद का प्रभाव और विकास श्रुतावतार
४ ६ से ७१२
४४२
४५६
४८०
४६२
४६६
अागम संकलना देवद्धि के कार्य के सम्बन्ध में नया मत देवर्द्धि गणि के पश्चात् की स्थिति
४६६
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