________________ होचका। 16 2 जिनपूजाविधि / द्वारा तीर्थंकर भगवान् की पूजा भक्ति करना भी स्वतः सिद्ध होता है और इससे गृहस्थ धर्म में 'पूजा' विषय कितना जरूरी है यह अच्छी तरह सिद्ध हो चुका / प्राथमिक कर्तव्य- प्रातः काल में उठकर प्रथम पंचपरमेष्ठी मंत्र को ( नवकार को गिने और सामायिक का नियम हो अगर भाव हो तो वह भी कर लेवे, बाद जरूरी कामों से निवृत्त होकर जहां जीवजंतु न हो ऐसी शुद्ध जमीन पर बैठ कर गरम जलसे या छाने हुए जल से स्नान करे, (यहां ध्यान रहना चाहिये कि अगर किसी के शरीरके किसी भाग में कुछ भी जखम हो और उसमें से खून या पीप निकलता हो तो पूजा नहीं होसकती ) स्नान करते वक्त अगर नवकारसी का पच्चखाण आगया हो तो दांतून भी कर सकते हैं / स्नान करने के बाद रूमाल या दुवाल से अपने शरीर को अच्छी तरह पोंछ लेवे फिर अच्छी सफेद धोती जो फटी न हो संधावाली न हो जिससे पैसाब या टट्टी न गया हो बिलकुल अखंड हो पहिन लेवे / उत्तरासन भी वैसाही सफेद अखंड बायी तर्फ से तिरछा जनोई की तरह धारण कर ले / पूजा षोडशक ग्रंथ के अभिप्राय से पूजा के लिये रेशमीन कपडा भी चल सकता है। परंतु वह रेशमीन कपडा भी सिवाय पूजा के ओर किसी काम में नहीं पहिनना चाहिये, तथा इन पूजा के कपड़ों में हाथ नाक या मुख न पोंछना चाहिये, दूसरे पहने के कपड़ों के शामिल भी