________________ 14 2 जिनपूजाविधि / ही फल-लाभ होगा। क्रिश्चियन प्रजा मूर्ति पूजा को नहीं मानती फिरभी वह चर्च में (गिरिजाघर में) जेसस क्राइष्ट की मूर्ति रखती है / मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी हैं फिर भी वे मक्का की तर्फ मुंह करके निमाज पढते हैं जो कि एक तरह से मूर्ति पूजा का ही स्वीकार है / चीन जापान सीलोन आदि में बौद्ध लोक बुद्ध देव को पूजते हैं और भारत वर्ष में हिंदू लोग विष्णु शंकर आदि को / अतः तत्त्वदृष्टि से देखा तो जमाने हाल में मूर्तिपूजा एक व्यापक धार्मिक मार्ग है / किसी भी व्यक्ति के आध्यात्मिक गुण-दोषों की परीक्षा के लिये उसकी मूर्ति ही आदर्श भूत साधन है। तीथकर देव अन्य देवों से श्रेष्ठ थे यह बात भी हम उनकी मूर्ति से ही जान सकते हैं / तीर्थकरकी मूर्ति में जो शान्ति, क्षमा, वीतरागता आदि गुण झलकते हैं वे अन्य मूर्तियों में नहीं पाये जाते / इस विषय में पंडित धनपालका नीचे लिखा श्लोक पढने लायक है "प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नं, वदनकमलमङ्कः कामिनीसंगशून्यः / करयुगमपि यत्ते शस्त्रसम्बन्धवन्ध्यं, तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव // 1 // " भावार्थ- "हे प्रभो ! तेरे दोनों नेत्र शांतरस से भरे हुए हैं, तेरा मुखकमल प्रसन्न है, तेरा अंकस्थान (गोद) स्त्री