________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह "जो पूएइ तिसंझं, जिणिंदरायं तहा विगयदोसं / सो तंइयभवे सिज्झइ, अहवा सत्तट्ठमे जम्मे // 1 // ___इसका तात्पर्य यह है-"जो मनुष्य शुद्ध अंतःकरण से जिनेश्वर देवकी त्रिकाल ( सुबह-दोपहर-शाम को) पूजा करता है वह तीसरे भव में या सातवे आठवे भव में मोक्षसुख को प्राप्त करता है / " देखिये कैसा उत्तम फल दिखलाया है ? मोक्षाभिलाषी गृहस्थ के लिये पूजाभक्ति सच मुचही मोक्ष का साधन है। मूर्ति पूजा की जरूरत इस साधन के द्वारा देवाधिदेव तीर्थंकरों की भक्ति करनी चाहिये / क्यों कि वे हमारे महान् उपकारी हैं। उन्होंने अपनी वाणी द्वारा तत्त्वज्ञान और मोक्ष का मार्ग बता कर हम पर बड़ा भारी उपकार किया है / इस उपकार को न भूलना इसी का नाम कृतज्ञता है / यह कृतज्ञता तब ही मानी जायगी जब कि हम भगवान् की पवित्र हृदय से भक्ति करेंगे। परंतु यहां पर एक सवाल उठता है, भगवान् यहां साक्षात् नहीं है, फिर हम किसकी भक्ति करें ? इसका जवाब यही है कि भगवान् की गैरहाजरी में उनकी मूर्ति ही हमारे लिये भगवान् हैं / जिनविरह में जिनमूर्ति ही जीवों के लिये पूर्ण आलंबन है। उसमें भगवान् का आरोप कर उसके सामने जो कुछ भक्तिभाव किया जायगा उससे जिन भक्ति का