Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 18
________________ अर्धमागधो पागम साहित्य 1 अंग (गणिपिटक)-1 आयारांग (आचारांग), ' सूयगडंग (सूत्रकृताङ्ग) 3 ठाणांग (स्थानांग), 4 समवायांग, 5 वियाहपण्णत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति), 6 नायाधम्मकहा । ज्ञातृधर्मकथा), 7 उवासगदसाओ उपासकदशा), 8 अन्तगडदसाओ (अन्तःकृद्दशा), 9 अणुत्तरोववाइयदसाओ ! अनुत्तरोपपातिकदशा), 10 पहवागरणाइं (प्रश्नव्याकरण), ।। विवागसुयं (विपाकश्रुतं), 12 दिठुिवाद (दृष्टिवाद 12 उपांग-1 ओववाइय (औपपातिक) 2 रायपसेणइय : राजप्रश्नीय), 3 जीवाभिगम 4 पन्नवणा (प्रज्ञापना) 5 सूरियपण्ण त्ति (सूर्य-प्रज्ञप्ति), 6 जम्बुद्दीवपण्ण त्ति (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति) 7 चन्दपण्णत्ति (चंद्रप्रज्ञप्ति) 8 निर यावलियाओ । निरयावलिका) 9 कप्पवडंवियाओ (कल्पावतंसिका), 10 पुफियाओ। पुष्पिका) 31 पुप्फचूलियाओ (पुष्पचूलिका) 12 वण्हिदसाओ (वृष्णि दशा) 6 छेदसुत्त-(छेदसूत्र) 1 निसीह (निशीथ), 2 महानिसीह (महानिशीथ), 3 ववहार (व्यवहार), 4 दसासुयक्खन्ध ( दशाश्रुतस्कन्ध ) अथवा आचारदसा ( आचारदशा ) 5 कप्पसुत्त (कल्पसूत्र) 6 जीयकप्प (जीतकल्प) या पंचकप्प (पंचकल्प) । 4 मूलसुत्त-(मूलसूत्र) । उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन), 2 दसवेयालिय (दशवैकालिक) 3 आवस्सय (आवश्यक।, 4 पिण्डनिज्जुत्ति (पिण्डनियुक्ति) (कहीं पर 'ओह निज्जुत्ति = ओघनियुक्ति)। 10पइण्णग (प्रकीर्णक ,-1 चउस रण (चतुःशरण), 2 आउ र पच्चक्खाण (आतुरप्रत्यव्याख्यान) 3 महापक्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान), 4 भत्तपइण्णा (भक्तपरिज्ञा), 5 तन्दुलबेयालिय (तन्दुलवैचारिक), 6 संथारग (संस्तारक),7 गच्छायार (गच्छाचार), 8 गणिविज्जा (गणि विद्या), 9 देविन्दत्थय (देवेन्द्रस्त्रव), 10 मरणसमाही (मरणसमाधि) । यद्यपि प्रकीर्णक ग्रन्थ अनेक हैं, परन्तु वालभी-वाचना के समय इन्हीं दस ग्रन्थों को आगम में सम्मिलित किया गया था । 12) चूलिकासूत्र-1 नन्दी, 2 अनुयोगद्वार। ये दोनों ग्रन्थ अन्य आगमों की अपेक्षा बहुत बाद के माने जाते हैं । भाषा और विषय की दृष्टि से अंग, मूलसूत्र और छेदसूत्र अधिक प्राचीन हैं। फिर उपांग, प्रकीर्णक, चूलिकाग्रंथ आते हैं। इन पर टीकाग्रथ 17वीं शती तक लिखे जाते रहे । प्रागम-वर्गीकरण के अन्य प्रकार - (1) सर्वप्रथम जैन आगमों का प्राचीनतम वर्गीकरण 'समवायांग' (समवाय, 136) में मिलता है। वहां आगमों के दो वर्ग किये गये हैं-पूर्व और अंग (द्वादश)। जो साहित्य महावीर से पूर्व निर्मित किया गया वह 'पूर्व' कहलाया। इनकी रचना 'द्वादशांगों' से पहले की है । [ 8 ]

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