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उपलब्ध प्रति का लेखनकाल 17वीं शती है । ग्रन्थकार ने प्रशस्ति में अपना उपर्युक्त वंश - परिचय दिया है
'खलचिकुलमहीपश्रीमदल्लावदीन प्रबलभुजरक्षे श्रीरणस्तम्भदुर्गे ।
सकलसचिवमुख्य 'श्रीधनेशस्य' सूनुः समकुरुत ' निबन्धं' सिंहनामा प्रभुर्यः । । 1121॥ ' धनराज और उसके दोनों पुत्र सिंह और श्रीपति का उल्लेख कृष्णर्षिगच्छीय आचार्य जयसिंहसूरि द्वारा लिखित 'प्रबोधमाला' की प्रशस्ति में भी मिलता है । यह ग्रंथ मन्त्री धनराज के लिए लिखा गया था । इसमें उसके दोनों को पुत्रों को कुलदीपक राजमान्य, दानी, गुणी और संघनायक बताया गया है ।
इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि. सं. 1528 ( शक सं. 1393, ई. 1471) मार्गशीर्ष कृष्णा 5 दिया है—
'वसु-कर-शर-चन्द्रे (1528) वत्सरे राम-नन्द
ज्वलन शशि (1393) मिते च श्रीशके मासि मार्गे । असितदलतिथी वा पञ्चमी.
. केऽर्के
गुरुमशुभ दिनेऽसौ ....
........1112211'
इसकी पूर्ण प्रति अनुपलब्ध है ।
SONG HOPE ....
........... . ...
प्रनन्तदेव सूरि (14वीं - 15वीं शती)
इनका विशेष परिचय नहीं मिलता । इनके द्वारा रचित 'रसचिन्तामणि' नामक
रसशास्त्र संबंधी ग्रन्थ मिलता है । यह लगभग के 'आयुर्वेदसौख्य' में इसको उद्धृत किया है । पूर्व का है, संभवत 14वीं - 15वीं शती का |
900 श्लोकों में पूरा हुआ है । टोडरानंद अतः इसका रचनाकाल 16वीं शती से
इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां भांडारकर इन्स्टीट्यूट, पूना ग्रन्थांक 192, 193 ) में सुरक्षित हैं ।
यह ग्रन्थ मुद्रित हो चुका है। मुरलीधरकृत हिन्दी अनुवाद के साथ जीवराम कलिदास ने बम्बई से 1911 ई. में छपाया था । हिन्दी टीका सहित वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से सं. 1967 में छपा था ।
नागदेव या ठक्कुर जिनदेव ( 14वीं - 15वीं शती के लगभग )
इनका लिखा हुआ मदनपराजय' नामक ग्रन्थ मिलता है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में
1 धरमिरिण - वाडूनाम्ना स्त्रीयुगलं मन्त्रिधनराजस्य ।
प्रथमोदरजी 'सीहा - श्रीपति पुत्रौ च विख्यातो ॥10॥
कुलदीपको द्वावपि राजमान्यो सुदातृतालक्षणलक्षितशयौ ।
गुणाकरौ द्वावपि संघनायकौ धनाङ्गजौ भुवलयेन नन्दताम् ।।11।।
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