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(जोसीराय) मथेन (मथेरण) था, जो महाराजा अनूपसिंह के काल में लेखक के रूप में प्रसिद्ध रहे। इनको महाराजा अनूपसिंह से राज्यसम्मान प्राप्त हुआ था।
जोगीदास ने 'दासकवि' नाम से रचनाएं की हैं। यह भी मथेन' थे। गृहस्थी बने हुए जनयति को मथेन या मथेरण कहते हैं। वरसलपुर के गढ़ की विजय (संवत् 1767 और 1769 के बीच) के प्रसंग पर महाराजा सुजानसिंह (1700-1735 ई.) के संबंध में संवत् 1769 में इन्होंने 'वरसलपुर विजय' अथवा 'महाराजा सुजानसिंह रो रासो' नामक काव्य की रचना की थी। इसमें कुल 68 पद्य हैं। इससे प्रसन्न होकर महाराजा ने दासकवि को 'वर्षासन', 'सासणदान' किया था, फिर व्यतीपात-पर्व के मध्य फरमान दिया था। इसके बाद इन्हें उक्त महाराज ने 'सिरोपांव' देकर सम्मानित किया था। इस बात का उल्लेख स्वयं कवि ने 'वैद्यकसार' के अन्त में 'कविवर्णन' प्रसंग में किया है
'बीकानेर वासी विसद, धर्म कथा जिह धाम । स्वेतांबर लेखक सरस, 'जोसी' जिनको नाम ।।72।। अधिपति भूप अनूप जिहि, तिनसों करि सुभ भाय । दीय दुसालो करि करै, कह्यो जु 'जोसीराय' ।। 73।। जिनि वह जोसीराय सुत, जानहु जोगीदास । संस्कृत भाषा भनि सुनत, भी भारती प्रकाश ।। 74।। जहां 'महाराज सुजान' जय, वरसलपुर लिय आंन । छन्द प्रबन्ध कवित करि, रासौ कह्यौ बखांन ।।75।। .. श्री 'महाराज सुजान' जब, धरम ललक मन आंन । 'वर्षासन' संकल्प सौं, दीप 'सांसण' करि दांन ।।76।। व्यतीपात के पर्व विच, परवानो पुनि कीन । छाप आपनी आप करी, 'दास कविनि' को दीन ।।77।। सब गुन जांन 'सुजानसिंघ', सब रायनि के राय ।
कविराज सु करि कृपा, बहुरि दयो 'सिरपाय' 178।।' वैद्यकसार-जोगीदास या दासकवि की यह वैद्यक कृति है ।
महाराजा सुजानसिंह के राजकुमार जोरावरसिंह की इच्छानुसार उनके नाम से दासकवि ने इसकी रचना की थी। इस बात का उल्लेख लेखक ने ग्रन्थ के प्रारम्भ और अन्त में किया है
1 गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा, बीकानेर राज्य का इतिहास, भाग : (1939), 'इतिश्री श्रीमहाराजाधिराजमहाराजा श्री 5 श्रीसुजाणसिंघजी वरसल्लपुर गड़ विजयं नाम समयः । मथेन जोगीदासकृत समाप्तः । संवत 1769 वर्षे माघ सुदि 5 दिने लिखतं ।'
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