Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 167
________________ 2. मेघविनोद-यह वैद्यक संबंधी प्रसिद्ध रचना है। 3. दानशीलतप- यह हस्तलिखित रूप में पंजाब भंडार में मौजूद है। र. का. सं. 1817 । मेघविनोद-इसकी रचना भी फगवाड़े में संवत् 1818 (1761 ई.) पौष वदी तृतीया, सोमवार को पुनर्वसु नक्षत्र और ब्रह्मयोग में पूर्ण हुई थी। यह आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण कृति है। इसमें विस्तार के साथ रोगों के निदान और चिकित्सा दोनों का विवरण दिया गया है। निदान-चिकित्सा का सुन्दर ग्रथ है। विभिन्न रोगों के लिए सरल, सुगम और प्रचलित सिद्ध योगों का संकलन है। इसके निर्माण में अनेक ग्रन्थों से सहायता ली गयी है, जिसका स्थानस्थान पर निर्देश मिलता है। यह विस्तृत और उपयोगी ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ प्रथम गुरुमुखी (पंजाबी) लिपि में प्रकाशित हुआ था। लाहौर के 'मोतीलाल बनारसीदास' प्रकाशन संस्था के संस्थापक सुन्दर लास जैन ने इसका नरेन्द्रनाथ शास्त्री से हिन्दी में भाषानुवाद कराया, जो 'सौदामिनी भाषाभाष्य' नाम से गद्य में लाहौर से ही 1942 में प्रकाशित हुआ था। अब इसका द्वितीय संस्करण, 1951 में मोतीलाल बनारसीदास, बनारस से छपा है, जो उपलब्ध है। ग्रंथकार की उक्ति के अनुसार इसमें पांच हजार दोहे, चौपाईयां और अन्य छंद हैं तथा बत्तीस अक्षर की 'गाथा' के हिसाब से सात हजार तीन सौ गाथा या ग्रंथ हैं। इसमें प्रथम अध्याय में परीक्षाविधि (नाड़ीपरीक्षा, मूत्र परीक्षा, कालज्ञान, प्रश्नविधि, मुख व नेत्र की परीक्षा), वैद्य, दूत, शकुन, रोगी, रक्तमोक्षण. मानप्रमाण नक्षत्र कष्टावली, वारकष्टावली, स्वप्न विचार, युक्तायुक्तविचार, वनस्पति । औषधियों का विचार, औषधसेवनकाल, अनुकल्पना, रोगों की गणना, शरीरकवर्णन, तेलपाक विधि, क्वाथपाक विधि, वात-पित्त-कफ के लक्षण व रोग-विषय दिये है। अ 2 से 11 तक ज्वरादिरोगों के निदान, संप्राप्ति, लक्षण, उपद्रव के विवेचन के साथ चिकित्सा का विस्तार के साथ विवरण दिया गया है। बारहवें अध्याय में विष, विरेचन, नस्य धूम्रपान, स्वरसादिकल्पना, निघंटु-वर्णन (द्रव्यों का परिचय व गुणधर्म ) आदि विषय दिये हैं। तेरहवें अध्याय में धातुओं के शोधन, अवलेह, घृत-तैल, आसव-अरिष्ट, गुटिका, पाक, पौष्टिकयोग वणित हैं। चिकित्साविषयक यह उत्तम संग्रह-ग्रन्थ है। इसमें 1 माधवनिदान, 2 वंगसेन 3 योगचितामणि, 4 शाङ्गधर, 5 योगशतक, 6 काल ज्ञान, 7 सन्निपातकलिका, 8 निघण्टु, 9 सारसंग्रह, 10 रत्नमाला, 11 पथ्यापथ्य, 12 वैद्यकुतूहल, 13 ब्रह्मयामल, 14 रसरत्नाकर, 15 वीरसिंहावलोक, 16 डामरतंत्र, 17 समंजरी, 18 आत्रेयसंहिता, 19 हारीतसंहिता, 20 चरकसंहिसा, 21 सारोद्धार, 22 मनोरमा, 23 भावप्रकाश, 24 हितोपदेश, 25 वन्द, 26 प्रभृति ग्रंथों के उद्धरण दिये गये हैं। इसमें प्रचलित | 1571

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