Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 170
________________ .ये अच्छे कवि थे। इनकी अधिकांश रचनाएं राजस्थानी में हैं । । इनकी रचनाएं सं. 1787 से 18 19 (1730 से 1782 ई.) तक की मिलती हैं। इसमें 51 पद्य हैं। इसमें भगवान् महावीर के दसोठण (नामस्थापन संस्कार). के अवसर पर की गई भोजन की तैयारी का वर्णन है। इस प्रसंग में भोजन के प्रकार, द्रव्य और उनकी विशेषताओं का भी उल्लेख हुआ है। प्रथम पद्य देखिए 'आसन पान खादिय तथा, स्वादिम च्यार प्रकार । यथा योग्य संस्कारयुत, भोजन होत तैयार ।।1 विश्राम (1785-1811 ई.) यह 'कूर्मदेश' के 'अर्जुनपुर' के निवासी थे। 'कूर्म' अर्थात् 'कच्छप' (कछुआ) 'कच्छपदेश' का अपभ्रश होकर वर्तमान 'कच्छ' शब्द बना है। यह कच्छ प्रदेश भारत के पश्चिम में सौराष्ट्र के उत्तर में, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी कोने पर. स्थित है, जो वर्तमान में महागुजरात प्रान्त का एक अंग है। यह प्रदेश चारों ओर से अरबसागर द्वारा घिरा होने से एक द्वीप (टापू) है। इसके तोन ओर सागर का जल भरा रहता है, केवल एक ओर (राजस्थान और उत्तरी गुजरात की ओर) दलदलयुक्त भाग है । __ 'कच्छ' में 'अर्जुनपुर' का अपभ्रंश रूप 'अन्जार' है जो भुज-नगर से पश्चिम में स्थित है। किसी समय वहां राजधानी विद्यमान थी। लेखक की 'व्याधिनिग्रह' की प्राप्त हस्तलिखित प्रति में 'अर्जुनपुर' के स्थान पर 'अन्जार' नगर का स्पष्ट उल्लेख होने से 'अर्जुन पुर' ही अन्जार है, इस तथ्य की पुष्टि होती है। वर्तमान में यह पालनपुर-गांधीधाम रेलवे लाइन पर स्थित है। विश्राम ने अपने को 'आगम' नामक गच्छ के मुनि ‘जीवा' के शिष्य 'पीतांबर" का शिष्य बताया है - 'कूर्मदेशेऽर्जुनपुरः तत्र वासी सदा किल । गुरु जीवाभिधानस्य गच्छ चागमसंज्ञकः 114011 तस्य 'पीतांबर:' शिष्यः तत्पादवन्दक: सदा । देवगुरुप्रसादेन 'विश्रामः' ग्रन्थकारकः ।।41।। (अनु. म., ग्रंयांत) इनका काल ईसवी की 18वीं शती का अन्त ज्ञात होता है । वैद्यकशास्त्रपर लिखे हुए विश्राम के दो ग्रन्थ मिलते हैं 1. अनुपानमंजरी 2. व्याधिनिग्रह । 1 रा. हि. ह. ग्रंथों को खोज, भाग 4, पृ. 154 [160]

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