Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 185
________________ ऋद्धिसार या रामऋद्धिसार (रामलाल) 20वीं शती यह खरतरगच्छीय क्षेमकीर्ति शाखा के कुशल निधान के शिष्य थे। ये बहुत अच्छे चिकित्सक थे। इनके द्वारा लिखे हुए कई ग्रंथ हैं। सब नथ उन्होंने स्वयं प्रकाशित किए थे। 'दादाजी की पूजा' (सं. 1953, बीकानेर) इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध रचना है। यह बीकानेर के निवासी थे। इनके अधिकांश ग्रंथ सं. 1930 से 67 के मध्य के हैं। ___ इनका लिखा हुआ 'वैद्यदीपक' नामक वैद्यकनथ है । यह मुद्रित है। सन्तानचिंतामणि, गुणविलास, स्वप्नसामुद्रिकशास्त्र, शकुनशास्त्र भी विषय से संबंधित ग्रंथ हैं । मुनि कांतिसागर यह खरतरगच्छीय जिनकीतिरत्नसूरिशाखा के जिन कृपाचंदसूरि के शिष्य उ. सुखसागर के शिष्य थे। आपका हिन्दी, राजस्थानी साहित्य पर अच्छा अधिकार था । इसके अतिरिक्त इतिहास, पुरातत्व, कला और आयुर्वेद तथा ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान था। यह अच्छे चिकित्सक व रसायनज्ञ थे। 'खण्डहरों का वैभव', 'खोज की पग__ डंडियां, जैन धातु प्रतिमा लेख, श्रमणसंस्कृति और कला, सईकी-एक अध्ययन, आदि का उच्चकोटि के शोधपूर्ण ग्रंथ हैं। 'एकलिंगजी का इतिहास' अप्रकाशित है। ......... आयुर्वेद साहित्यपर भी आपने कुछ लेख लिखे हैं-'आयुर्वेद का अज्ञात साहित्य' (मिश्रीमल अभिनंदनग्रंथ, पृ. 300-317) आदि। . [175]

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