Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 184
________________ इसकी संवत् 1945 की हस्त-प्रति विद्यमान है ।1 श्रीपालचंद्र (19वीं शती) यह खरतरगच्छोय विवेकलब्धि के शिष्य थे। इनका दीक्षा का नाम शीलसौभाग्य था। अनेक विषयों में इनकी गति है। आयुर्वेद के भी ये अच्छे ज्ञाता थे। इनका लिखा हुआ 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा' ग्रन्थ है। यह बहुत विस्तृत रचना है। जिसका प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस बम्बई से हुआ है। इसमें व्याकरण, नीति, धर्म के साथ वैद्यकशास्त्र, रोगपरीक्षा, सामान्य ज्योतिष, स्वरोदय, शकुन विचार आदि विषय भी हैं। __ इनकी सं. 1967 (1910 ई.) में मृत्यु हुई थी। रामलाल महोपाध्याय (20वीं शती) यह बीकानेर के निवासी और 'धर्मशील' के शिष्य थे। यह जैन खरतरगच्च के . जिनदत्तसूरि शाखा के अनुयायी थे। इनका एक वैद्यकनथ 'रामनिदानम्' या 'राम ऋद्धिसार' नाम से संस्कृत में पद्यबद्ध मिलता है । रामनिदानम् (रामऋद्धिसार)-इस ग्रन्थ में संक्षेप में सब रोगों के निदान बताए गए हैं। इसमें कुल 712 श्लोक हैं । ग्रंथ के प्रारंभ में जिनेन्द्र (महावीर) से श्रेय की कामना की गई है। इसके बाद 'जिनदत्तसूरि, कुशलसूरि, गुरु धर्मशील और सरस्वती देवी' को नमस्कार किया है । ग्रंथारंभ में लिखा है-'अथ रामनिदानं लिख्यते । श्रियं स दद्यात् भवतां 'जिनेन्द्र यदाप्तस्तस्याद्वादसुधासमुद्र । येन निर्दिष्टभवा रुजापहृत, सिद्धौषधं पथ्यनिमित्तकारणम् ।।1।। 'श्रीजिनदत्तसूरीशं' सूरिं कुशलसंज्ञकम् । सद्गुरु 'धर्मशील' च वाग्देवीं प्रणमाम्यहम् ।।2।। निदानं सर्वरोगाणां आचक्षेऽहं समासतः । बालानां सुखबोधाय 'निदानं रामसंज्ञकम् ।।3।। आत्रेय निजपुत्राय नाभेय जिनपुगवम् । शिक्षितमायुर्ज्ञानार्थ 'तत्सारं' अत्र संग्रहम् ।।4।।' आत्रेयकृत नैतानिक विवेचन सार इसमें दिया जा रहा है -- ऐसी ग्रंथकार की उक्ति है । ग्रंथ की अपूर्ण हस्तप्रति प्राप्त है। (रा. प्रा. वि. प्र. जोधपुर, 5569) 1 मुनि कांतिसागर, आयुर्वेद का अज्ञात साहित्य, उदयाभिनंदनग्रन्थ, 1968 [1745

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