Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 191
________________ और गुरु का नाम श्रुतकीर्ति था। इसका काल 16वीं शती का मध्य या उत्तरार्ध माना जाता है। इसके कन्नड़ भाषा में रचित अनेक ग्रन्थ हैं -- भारत, शारदाविलास, रसरत्नाकर, बैद्यसांगत्य । भारत की रचना कवि ने अपने आश्रयदाता राजा साल्वमल्ल या साल्वदेव की प्रेरणा से 'भामिनी षट्पदि' छंद में की थी। इस ग्रन्थ का अन्य नाम 'नेमीश्वरचरिते' भी है। यह धामिक कथानथ है। शारदाविलास में ध्वनिसिद्धांत का पदन है। रसरत्नाकर में अलंकारशास्त्र का निरूपण है और नौरसों का विस्तार से वर्णन है। 'वैद्य सांगत्य' एक उत्तम वैद्यक ग्रन्थ है। 'सांगत्य' कन्नड़ काव्य के छंदविशेष का नाम है। परिशिष्ट-1 अज्ञातकर्तृक रचनाएं 1. नाडोविचार अज्ञातकर्तृक 'नाडीविचार' नामक कृति 78 पद्यों में है। पाटन के ज्ञानभंडार में इसकी प्रति विद्यमान है। इसका प्रारंभ 'नत्वा वीरं' से होता है, अतः यह जैनाचार्य की कृति मालूम पड़ती है। संभवतः यह 'नाडीविज्ञान' से अभिन्न है। 2. लाड़ीचक्र तथा नाड़ीसंचारज्ञान इन दोनों प्रथों के कर्ताओं का कोई उल्लेख नहीं है। दूसरी कृति का उल्लेख 'वृहट्टिप्पणिका' में है, इसलिए यह ग्रन्थ पांच सौ वर्ष पुराना अवश्य है ।' 3. नाड़ोनिर्णय___अज्ञातकर्तृक 'नाड़ीनिर्णय' नामकग्रन्थ की 5 पत्रों की हस्तलिखित प्रति मिलती है। वि. सं. 1812 में खरतरगच्छीय पं. मानशेखर मुनि ने इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि की है। अन्त में 'नाड़ीनिर्णय' ऐसा नाम दिया है। समग्र ग्रंथ पद्यात्मक है। 41 पद्यों में ग्रंथ पूर्ण हुआ है। इसमें मूत्र परीक्षा, तैलबिन्दु की दोषपरीक्षा, नेत्रपरीक्षा, मुखपरीक्षा, जिह्वापरीक्षा, रोगों की संख्या, ज्वर के प्रकार आदि से संबंधित विवेचन 1-8 जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 5, पृ. 232 [181]

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