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पचारी शहर में जैनियों का निवास था । उसमें जैन मंदिर में लक्ष्मीचन्द का निवास था ।. इसकी गुरुपरम्परा इस प्रकार बतायी गयी है
कुशालचंद
नैनचंद
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मोतीराम
श्रीलाल
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लक्ष्मीचंद
महिलाल
इसके अतिरिक्त लक्ष्मीचंद के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती ।
इनका एक वैद्यक-ग्रन्थ मिलता है - 'लक्ष्मीप्रकाश' । इसमें रोगों का निदान, पूर्व
लक्षण और लक्षण लिखकर स्वानुभूत औषधयोग दिये हैं । ग्रन्थ-रचना में अनेक ग्रंथों, खासकर माधवनिदान, भावप्रकाश, योगचिंतामणि, चरक, वाग्भट, शार्ङ्गधरसंहिता आदि से सहायता ली गई है
"लक्ष्मीप्रकाशज' ग्रंथ है पूर्व ग्रन्थ की साख ।
'माधवग्रन्थ' निदान कृत 'भावप्रकाश' की साख ॥
'योगचिंतामणि' उपाय करि चरक वागभट जान ।
'शारंगधर' इत्यादि सब एही उपाय बंखान ॥' (ग्रंथांत में )
यह ग्रन्थ हिन्दी पिंगल में- दोहा, सवैया, चौपई, छप्पय, सोरठा छंदों में लिखा है ।
- ग्रन्थकार के अनुसार इसमें कुल छंदसंख्या 1720 बतायी गयी है—
'दोहा सवैया चौपई छप्पय सोरठा जान ।
एक सहस्त्र अरु सातसे ऊपरि बीस बंखाण || ' ( ग्रन्थांत में )
कवि ने ग्रंथ का रचनाकाल शक संवत् 1802 और विक्रमी संवत् 1937 (1880 ई.) वैशाख कृष्ण 11 बुधवार दिया है । यह ग्रन्थ सिंह लग्न में पूरा हुआ था - 'साको अठारा में कह्यी उपरि दोय बधाय । ता दिन में वो ग्रंथ है इह विधि कही जिताय ॥ संवत् उगणीसे अधिक वर्ष ऊपर सैंतीस । वदि वैशाख एकादशी बुध दिन प्रगटीस || सिंघ लग्न में पूर्ण है 'लक्ष्मीग्रथप्रकाश' । अल्प बुद्धि करि कीजिये ग्रंथ चरण को भाव ॥'
ग्रन्थारम्भ में जिन, शारदा, पंचपरमेष्ठि, धन्वन्तरि और वाग्भट को नमस्कार किया गया है ।
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