Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 175
________________ अमृतसर आकर बस गए यहां जैन-यति सूरतराम के प्रभाव से इन दोनों ने दीक्षा ले ली थी। आयुर्वेद का ज्ञान श्री गंगाराम ने 'सूरतराम' से ही ग्रहण किया था । 'यतिनिदान' के अन्त में दी गई पुष्पिका से भी ज्ञात होता है यह श्वेतांबर सम्प्रदाय में नागौरीगच्छ के गच्छ शिरोमणि मुनि 'संगतिराज' के शिष्य पंडित 'सूरतराम' के शिष्य थे । ' इति श्री गच्छशिरोमणि 'गच्छ नि (ना) गोरी' में श्री मुनिराज 'संगतिऋषि', तत् शिष्य श्री पण्डित पूज 'सूरतराम', तत्शिष्य 'कवि - गंगाराम यति' विरचितं 'यतिनिदानं' 'समाप्तम् ।' सूरतराम ज्ञान-विज्ञान में प्रसिद्ध थे । विद्वानों के पूज्य थे । यति गंगाराम लिखते हैं 'श्री मुनि सूरतराम मुख वचन पियूष समान | वह नर हुए अमर लघु, जिन नर कीने पान ||' (अ. 25 ) ये आजीवन अमृतसर में रहे । नगर है । उस समय वहां शासन था - उनके विषय में रावी और व्यास के मध्यवर्ती क्षेत्र में बसा यह प्रसिद्ध 'महांसिंह' के पुत्र 'रणजितसिंह' (आहवजितसिंह ) का 'रावी व्यासा के विषै अमृतसर विख्यात । गुनि धनि तहि जन वसें, देखत सब दुःख जात ।। भूपति तिस पुर को बली, 'महां सिंघ' को पूत । 'आहवजित' इस नाम कर कलिजुग में पुरुहूत ।' रणजितसिंह का शासन प्रतापी और समृद्धिशाली था । अमृतसर नगर में पश्चिमोत्तर भाग में ! 'बीब गली दुगलां दी' नामक मुहल्ले में गंगाराम यति रहते थे । वहीं 'यति निदान' ग्रन्थ की रचना की थी । 'अमृतसर पुर में सुखद पश्चिम उत्तर मांहि । 'वीषद्वार दुगलानि' की कवि को मन्दर आहि ॥ ग्रन्थ रच्यो यहि यति ने ताते 'यति निदान' । 'गंग यति ' कवि को सदा रह्यो आत्मा ध्यान ।। ' वैद्यकविद्या पर 'गंगाराम' के चार ग्रंथ मिलते हैं- 1, यति-निदान, 2. लोलिम्ब4. भावनिदान । राजभाषा, 3. सूरतप्रकाश, 1, यतिनिदान - यह 'माधवनिदान' का दोहे चौपाईयों में अनुवाद है । ग्रन्थकार के अनुसार मुरादाबाद निवासी जसवंत नामक ब्राह्मण जो अमृतसर में यति गंगाराम के पास आकर रहने लगा था, की प्रार्थना पर संस्कृत के माधवनिदान का पद्यमय भाषानुवाद किया था । उसे संस्कृत कठिन जान पड़ती थी । जनसाधारण में भी संस्कृत का समझ पाना शनैः शनैः दुरूह होता जा रहा था [165]

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