Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 178
________________ रोग में स्त्री को शीतल जल नहीं पीना चाहिए और न ही ठंडी हवा में घूमना-फिरना चाहिए। योनिव्यापदों के कारणों में देश-काल रीतिरिवाज, कुल के देवीदेवताओं, सती, सौकन का कोप, फिरंग या उपदेशपीडित पुरुष से संसर्ग भी हेतु बताये गए हैं। माधव के अनुसार वंध्या का वर्णन कर 'धन्वन्तरि' के मतानुसार उसके तीन भेद बताए हैं-जन्मवन्ध्या, काकवन्ध्या और मृतवत्सा। मृतवत्सा के पुन: 8 भेद दिये हैं । इस में भगदोष की चिकित्सा वैद्य करे। कर्मदोष बलवान् हो तो कर्मविषाक के अनुसार यत्न करे । मन्तव्य के अनुसार नाम, इन्द्र, गणेश, महेश, दिनेश (सूर्य) और जिनेश (जैन तीर्थंकर) महावीर में से किसी एक का इष्ट रखें। देवीकोप को दूर करने के लिए देवीदेवताओं की श्रद्धापूर्वक पूजा व उपासना करे । शारीरिक दोष को दूर करने के लिए शिवलिंगी का एक बीज या विधारे का बीज गुड में लपेट कर खा जावे इससे गर्भ ठहरता है। _ 'यति निदान' में स्त्रीरोगाधिकार में 'बाधकरोग' नामक विशिष्ट व्याधि का वर्णन प्राप्त होता है। ये सन्तानोत्पत्ति में बाद्या जलने वालि योनि-गर्भाशयरोग हैं। इनके चार प्रकार बताये हैं - रक्तभाद्री, पष्ठी, अंकुर और जलकुमार | कुछ स्त्रियों को केवल स्त्रीसंतान ही पैदा होती है। लिंग-परिवर्तन कराने वाली औषधयोग गंगयति ने दिया है-जब गर्भ दो मास या 70 दिन का हो जावे तब स्त्री को प्रतिदिन एक-एक माशा भांग के बीज गुड़ में लपेट कर जल के साथ निगला दें। यह प्रयोग निरंतर 7 माह तक करें। उसके बाद छोड़ दें। इस प्रयोग के करने से गर्भ लड़की लड़के में बदल जावेगा। गंगयति का यह अनुभूत प्रयोग लगता है। इसी प्रकार, स्तनविद्रधि में ज्वार के दोनों की पुल्टिस बांधना लिखा है। स्तनविद्रधि में एक मरहम दिया है-तिलतल 12 तोले लेकर गरम करें, उसके एक पल (4 तोले) सिन्दूर मिलाकर खूब गर्म करें, हिलाते रहें। फिर नीचे उतार लेवें। बाद में खूब हिलावें, ठंडा होने पर मलहम बन जावेगा। इसको स्तनविद्रधि में बांधने से शीघ्र आराम होता है। बाल ग्रहों के प्रसंग में धन्वन्तरिमत के रूप में गंग यति ने प्रतिमास होने वाली विशिष्ट ग्रहपीड़ा का वर्णन किया है जो माधवनिदान में नहीं हैं - बालकों को प्रथम मास में पूतनाग्रह, द्वितीयमास में कुटकुटा देवी का दोष, तृतीयमास में गोमती ग्रह, चतुर्थमास में पिंगलादेवी, पंचममास में कुटकुटा ग्रह, षष्ठमास में कंपितादेवी, सप्तममासमें शीतलादेवी, अष्टममास में राजनीदेवी, नवममास में कीरनादेवी, दशममास में शीतलादेवी, एकादशमास में राक्षसीदेवी का, द्वादशमास में सूखे की बीमारी हो जाते हैं। इसी प्रकार 12 वर्ष तक बच्चों में क्रमशः प्रथम वर्ष में पूतनागर, द्वितीयवर्ष में रोदनी देवी, तृतीयवर्ष में धन्नादेवी, चतुर्थवर्ष में चंचलादेवी, पंचमवर्ष में नलनीदेवी, षष्ठमवर्ष में यातनादेवी, सप्तमवर्ष में मंजनादेवी, अष्ठमवर्ष में विन्ध्यवासिनीदेवी, नवमवर्ष में 168]

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