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मदात्यय-दाह, 11. उन्माद-अपस्मार, 12. वात रोग, 13. वातरक्त, 14. शूल, उदावर्त, 15. गुल्म-हृद्रोग़, 18. मूत्रकृच्छ-मूत्राघात - अश्मरी, 17. प्रमेह-मेदोरोग, - 18, उदर रोग, शाथ वृद्धि, 19. गलगण्ड-गण्डमाला-ग्रन्थि-अपची-अर्बुद-श्लीपदबिद्रधि व्रणशोथ-शारीरव्रण-सद्योव्रण-भग्न-नाडीव्रण, 20. भगंदर-उपदश-शूकरोग, 21. कुष्ठ, शोतपित्त, 21. अम्लपित्त, विसर्प, विस्फोट, मसूरिका, 22. स्नायुक, क्षुद्ररोग, मुख रोग, 23. नासारोग, नेत्ररोग, शिरोरोग, 24. स्त्रीरोग, (प्रदर रोग, योनि व्यापद, योनिकंद, बाधक रोग, गर्भ रोग, मूढगर्भ, प्रसूतरोग, स्तनरोग, दुग्धरोग), बालरोग, विष रोग, 25. मिश्रकाध्याय सम्प्राप्ति--विवेचन नाडीपरीक्षा मूत्रपरीक्षा, शारीरकज्ञान। इस प्रकार आयुर्वेदीय निदान विषय पर यह सर्वा गपूर्ण ग्रन्थ है । चौबीसवें अध्याय के प्रारम्भ में यति गंगाराम ने सूचित किया है कि पूर्व के 23 अध्याय वि. संवत् 1877 कार्तिक शुक्ल 10 को पूर्ण हो गए।
यह ग्रन्थ केवल माधवनिदान का अनुवाद-मात्र नहीं है। कुछ नये रोग भी इसमें वणित हैं। 22वें अध्याय में 61 क्षुद्ररोगों का वर्णन किया है। इनमें शूकरदंष्ट्र, कच दद्रु, बध, पित्तरोग (बरसात में होने वाली फुसियां), दग्धपित्त, कनेडू (कन फेड), छिक्का रोग --- इन छः रोगों का विवरण अधिक दिया है।
गंग यति का कथन है कि एक एक रोमकृप में सौ सौ रोग हो सकते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि के अनुसार उनकी कल्पना और ज्ञान करे।
23वें अध्याय में उदरशूल-विशेष के रूप में 'बीलारोग नामक विशिष्ट रोग का निदान दिया है। इसके हेतु शारीरिक और नजर का दोष बताया गया है। इसके निदान-लक्षणों का वर्णन दिया है। यद्यपि 'यति निदान' निदान का ग्रन्थ है, परन्तु कहीं कहीं इसमें अनुभूत औषधि एवं तंत्र-मंत्र प्रयोग दिए गए हैं। 'बीलारोग' के लिए मंत्र-प्रयाग दिया है। इसका यति गंग ने सिद्ध-चिकित्सा के रूप में उल्लेख किया है। 23वें अध्याय में ही यति गंग ने 'नपूसकता' के 8 भेद बताए हैं-1 वात से. 2 पित्त से, 3 कफ से, 4 वातपित्त से, 5 वातकफ से, 6 पित्तकफ से, 7 सन्निपात से और 8 परस्त्री के साथ मैथुन करने से। कहीं कहीं लेखक ने अपने स्वतंत्र विचार भी प्रकट किये हैं। प्रदर से स्त्री की शोभा और सौंदर्य नष्ट हो जाता है। इसे रूपक में कवि ने सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है-कामिनी स्त्री का शरीर आकाश है, मुख चंद्रमा है, केश संध्या है, अंग चमकते तारे हैं, देखने वाले मनुष्यों के नेत्र कुमुद हैं, जो स्त्रीमुखरूपी चंद्रमा को देखकर खिल जाते हैं। यह सब सुन्दर है। परन्तु प्रदररूपी सूर्य के उदय होने पर यह सब फीका पड़ जाता है। (अध्याय 24)
कहीं कहीं ग्रन्थ में संक्षिप्त अनुभूत चिकित्सा-प्रयोग और पथ्यापथ्य भी लिखे गये हैं। प्रदर की चिकित्सा में लिखा है-चूहे की मींगनी महीन पीसकर प्रतिदिन 6 माशे की मात्रा में बकरी के दूध के साथ खाने से सब प्रकार का प्रदररोग दूर होता है। इस
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