Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 174
________________ कर्मचन्द्र यह खरतरगच्छीय 'चौथ जी' के शिष्य थे। इनकाकाल वि. 18वीं शती है। इन्होंने 'माधवनिदान ज्वराधिकार-टीका' की रचना की थी। इसकी हस्तप्रति हीराचंदसूरि भंडार बनारस में है। हंसराज पिप्पलक (वि. 18वीं शती) इनका विशेष परिचय नहीं मिलता। इनकाकाल वि. 18 वीं शती है । इनके लिखे ग्रन्थ 'मूत्रलक्षण' की हस्तप्रति 'ख. जयपुर' में है । __ गंगाराम यति (1821 ई.) परिचय-पंजाब के यति-वैद्यों में गंगाराम यति का स्थान महत्वपूर्ण है । 'यति-निदान' के अन्त में स्वयं कवि द्वारा दिये गये 'कवि-कुल-वर्णन' से ज्ञात होता है कि ये मूलतः स्यालकोट के निवासी थे। कवि गंगाराम और उनके छोटे भाई धनपति वहां से 1 इह संखेपतः अर्थ लख सारीरक निज ज्ञान । कविकुल भाखों प्रगट अब गच्छ नाम परमान ।। जनमसारि जिन वीर की, तजी भस्म ग्रह जौन । उदय भये हीरा गिरि रूपचन्द सिस तौन ।। उदति दिवाकर तप विषे, वैरादिग सिख चैन । 'वस्तुपाल कल्यान मुनि भैरव मुनि यति जैन । आचारज गिरमेर सम नेमचन्द धर धीर । तिन के सुरतरु सम भये 'प्रासकरन' वर वीर ।। तिस प्रभ ते साखा भई, हरषावत सुख नाम । 'हरषचन्द' मुनिराज गुरण करामात को धाम ।। हरषचन्द मुनिराज के सिख भूरि फलफूल । 'खेमचन्द मुनिराज ग्रहि, ज्ञातागुन निज मूल ।। सिख जुगल तिनके भये मोहन ऋष मुनिराम । 'रामचन्द' के सिख सम 'संगतमुनि' सुख धाम ।। 'सालकोट' में प्रबल तप तेरा सिख समाज । सभी गये परलोक सुख, रहे 'तीन मुनिराज ॥ 'अमीचन्द' सलकोट में वसे सदा ग्रह त्याग । दुइ मुनि प्राइ वसे सुखी 'अमृतसर' बड़ भाग ।। ज्ञानवान तप तेज पर सील सिरोमनि भूप । श्री ऋषि 'सूरतराम' मुनि अद्भुत सुन्दर रूप । सिख जुगल तिनके भये 'गंगयति' कविदास । 'धनपति' ऋषि लघु भ्रातवर रहो सदा सुखवास ।। [164]

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