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अनुपानमंजरी
____ इस ग्रन्थ का प्रकाशन अभी कुछ समय पूर्व गुजरात आयुर्वेद युनिवर्सिटी, जामनगर से हिन्दीटीकासहित हुआ है ।
ग्रन्थ के प्रारम्भ में सच्चिदानन्द को नमस्कार किया है। इसके विषय को उपक्रम में बताया है-धातु, उपधातु, स्थावर विष, जंगमविष के विकारों की शांति के लिए अनुपानमंजरी का व्याख्यान किया है
'धातुस्तथोपधातुश्च विषं स्थावरजंगमम् ।
तस्य विकार शान्त्यर्थं वक्ष्येऽनुपानमंजरी ।।2।।' ___ यह ग्रन्थ पांच 'समुद्देश्यों' या 'पटलों में विभक्त है। इनके नाम और विषयवस्तु इस प्रकार हैं1. धातुविकारशांति कृतप्रकरण- इसमें अपक्व, पक्व, सुवर्ण, रूपा, वंग, अयः, पित्तल मादि धातु-विषजन्य विकारों की शांति के उपाय बताये गए हैं। 2. उपधातु-शांतिप्रकरण- इसमें पारद, ताल, मनःशिला, गंधक, शिलाजीत, तुत्थ, कासीस, मुक्ता, प्रवाल, हीरक आदि के दोषों की चिकित्सा का वर्णन है । 3. स्थावरविषशांति कृतप्रकरण-इसमें स्थावर (वनस्पतिज) विषों यथा-अफीम, धत्तूर, भल्लातक, वत्सनाभ, सुपारी, कोद्रव, कुचला आदि के विकारों की शांति के उपाय सूचित हैं। 4. जंगमविषशांतिप्रकरण-इसमें तरक्षु, श्वान, बिच्छु, सर्प, भ्रमर, मक्षिका, छुच्छुन्दर आदि जीव-जन्तुओं के विष की चिकित्सा बतायी है। 5. धातु-उपधातु मारणविधि- इसमें धातु, उपधातुओं के शोधन, मरण और रोगविशेष में उनके अनुपान का वर्णन किया है ।
'अथातः संप्रवक्ष्यामि धातूपधातुमारणैः ।
रोगाणामनुपानं तु संक्षेपात्कथ्यतेऽधुना ।।' 6. रोगानुपानप्रकरण-इसमें शूल, संग्रहणी आदि रोगों के अनुपानों का वर्णन है।
अन्त में लेखक ने धातुओं और उपधातुओं का नाम परिगणन किया हैधातुओं- सोना, रूपा, तांबा, लोह, शीसा, खपरिया और जसद । उपधातुएं-पारा, गंधक, हरताल, अभ्रक, मनःशिला, सुवर्णमाक्षिक, सोमल ।
'सुवर्ण रजतं ताम्र लोहं नागं च खर्परं । सप्तमं जसदं धातुः ज्ञातव्यं विबुधः जनः ।।' ...... 'पारदं गन्धकं तालं अभ्रकं च मन:शिला। माक्षिकं सोमलं तालं ज्ञातव्याः सप्तोपधातवो ये ॥'
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