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वास्तै 'बालतंत्रग्रन्थभाषावचनिका' करें, मंद बुद्धि के वास्तै और या ग्रन्थ विर्षे पोडश प्रकार की बांझ स्त्री कथन, नामर्द का कथन, गर्भरक्षा विधान कथन, बंध्या स्त्रि का रुद्र ऋतु) स्नान कथन, कष्टि स्त्रि का उणय, बालक की दिन मास वर्ष की चिकित्सा कथन, बलि विधान कथन, धाय का लक्षण कथन, दुध श्रुद्ध कर्ण का उपाय, और सर्व बालक का रोगां का उपाय कथन, इसौ जो बालतंत्र ग्रन्थ सर्वजन कौं सुखकारी हुवी। इति बालतंत्र ग्रंथ भाषा वचनिका सर्व उपाय कथन पनरमौ पटल पूरो हुबो ।।15। इति श्री बालतंत्र ग्रन्थ वनिका वंध पूरी पूर्णमस्तु ।।' (3) वैद्यकग्रन्थ- (वि. 18वीं शती).
इसकी हस्तप्रति आचार्य शाखा भंडार, बीकानेर में विद्यमान है ।
मेघमुनि (1761 ई.) लोकागच्छ की एक शाखा उत्तर प्रांत में जाने के कारण 'उत्तराधगच्छ' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी गच्छ के 'मुनि जटमल' के शिष्य 'परमानंद' हुए, उनके शिष्य 'सदानंद' हुए, उनके शिष्य 'नारायण' हुए, उनके शिष्य 'नरोत्तम' हुए, उनके शिष्य 'मायाराम' हुए और मायाराम के शिष्य 'मेघविजय' हुए, जो सामान्यतया 'मेघमुनि' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 'मेघमाल' और 'मेघविनोद के अन्त में उन्होंने अपनी इसी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है
'श्री 'जटुमल' मुनिसजी सब साधन राजा, 'परमानन्द' सु सीस है ग्रन्थ विगूनि साजा । शिष्य भयो 'सदानंद' तिसतें उपमा भारी, चौदा विद्या युक्त सोई आज्ञा गुरु कारी ।।12।।
ताहि शिष्य 'नारायण' नाम, गुण सोभा को दीसे ठाम । तांको शिष्य भयो 'नरोत्तम' विनयवंत आज्ञा नभगोत्तम ।।16।। ता सेवा में 'मयाजुराम, कृयावंत विद्या अभिराम । तिनकी दया भई मुझ ऊपर, उपज्यो ज्ञान सही मोही पर ।।17।।
(मेघमाल, ग्रन्थांत) मेघमुनि जैन यति थे और इनका निवासस्थान पंजाब के जालंधर जिले में 'फगवाड़ा' नामक नगर था.। यह नगर कपूरथला रियासत में था और व्यापार की प्रसिद्ध मंडी रहा । यहीं रहते हुए उन्होंने तीन ग्रन्थ लिखे थे1. मेघमाल—यह वर्षाविज्ञान संबंधी ग्रन्थ है। इसकी रचना सं. 1817 कार्तिक सुदि 3 गुरुवार को फगवाडे के राव (ठाकुर) 'चौधरी चाहड़मल' के काल में हुई थी। यह ग्रन्थ वेंकटेश्वर प्रेस बंबई से प्रकाशित हो चुका है। 'चूहडमल्ल जु चौधरी, फगवारे को राउ। चतुर सैन का सोभ हैं, जिउ उडगण
शशि थाउ ।।22॥'
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