Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 161
________________ 5 स्वण नमारणकथन पंचमोध्यायः पद्य 84 6 रसमारण कथन षष्ठोध्यायः पद्य 264 7 वीर्य रोधनाधिकार सप्तमोध्यायः पद्य 22 8 ? नाम (अप्राप्य) 9 मिश्रकाध्याय: नवमः पद्य 79 10 छाया पुरख (पुरुष) कथन दशमोध्यायः पद्य 44 यह सारा ग्रंथ चौपाई छंदों में लिखा गया है। भाषा सरल और सुगम है । शालिनाथकृत रसमंजरी का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से सं. 1978 में हुआ था। गुरगविलास (1715 ई.) ___ यह खरतरगच्छीय 'सिद्धिवर्द्धन' के शिष्य थे । इनके लिखे हुए 'गुणरत्नप्रकाशिका' नामक वैद्यक-ग्रन्थ की हस्तप्रति आचार्यशाखाभंडार बीकानेर में मौजूद है। इसका रचनाकाल सं. 1772 (1715 ई.) है। लक्ष्मीचन्द (1723 ई.) यह जैनयति थे। यह खरतरगच्छीय अमर विजय के शिष्य थे। इनका काल 18वीं शती का पूर्वार्ध था। इनकी लिखी 'आगरा गजल' का रचनाकाल सं. 1780 आषाढ़ शुक्ला 13 दिया हुआ है। इनके द्वारा लिखा हुआ एक 'वैद्यक ग्रन्थ' इनकी परम्परा के उपाध्याय जयचंदजी के भण्डार बीकानेर में प्राप्त है। दीपकचन्द्र वाचक' (1735 ई.) यह खरतरगच्छीय दयातिलक 'उपाध्याय' के शिष्य थे। यह 'वाचक' मुनि 1 अगरचन्द नाहटा, राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रथों की खोज, भाग 2, पृ. ! 58 । हस्तलिखित प्रतियों में इनके 'दीपचन्द्र' और 'दीपचन्द' नाम भी मिलते हैं। मुनि कांतिसागर ने 'लंघनपथ्यनिर्णय' का कर्ता 'लक्ष्मीनाथ वाचक' लिखा है। शेष विवरण दीपचन्द वाचक कृत 'लंघनपथ्यनिर्णय' के समान है। रचनास्थान व रचनाकाल भी वही है। (द्र. 'प्रज्ञात अायुर्वेदिक साहित्य', उदयाभिनन्दनग्रंथ, पृ. 621)। 'चेकलिस्ट ऑफ संस्कृत मेडिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स' (नई दिल्ली, 1972) में श्री लक्ष्मीनाथ कृत 'लंघनपथ्यनिर्णय' का उल्लेख है (क्र. 416)। परन्तु यह नाम मेरे द्वारा देखी गई इस पथ की छः प्रतियों में नहीं मिला। [151]

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