Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 160
________________ गाथा', 'मल्लिनाथ पंचकल्याणकस्तवन' आदि । वैद्यक पर 'रसमंजरीभाषाटीका ' मिलती है । रसमंजरी भाषाटीका - की हस्तलिखित प्रति अभयजैन ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है । परन्तु यह त्रुटित है । यह वैद्यनाथ के पुत्र शालिनाथ नामक ब्राह्मण द्वारा प्रणीत संस्कृत के 'रसमंजरी' ग्रंथ की पद्यमय भाषाटीका है । सुगम और सरल बनाने के लिए श्वेताम्बरी समरथ ने इसका यह अनुवाद किया था । 'वैद्यनाथ' ब्राह्मण भयों, ताको पुत्र परसिद्ध | 'शालीनाथ' जसु नाम है, शुचि रुचि सदा सुबुद्धि ॥15॥ शास्त्र अनेक विचार के, देखि वैद्य संकेत । तिसने करी रसमंजरी, सुकृति जनके हेत |16|| किये 'शालिनाथ रसमजरी', संस्कृत भाषा मांहि । समभि न सकति मूढ़ की, व्याकुल होत है आहि ||8|| तातें भाषा करत है, 'श्वेतांबर समरत्थ' । सुगम अरथ सरलता, मूरख जन के अरथ ||9|| ( ग्रंथारम्भ ) ग्रन्थ के प्रारम्भ में शालीनाथकृत रसमंजरी के वन्दना की गई है । अंत में गुरु का नामोल्लेख इस प्रकार हुआ है अनुसार इसमें भी उमासहित शिव की 'श्री मतिरतन गुरु परसाद, भाषा सरस करी अति साद । ताको शिष्य 'समरथ' है नाम, तिसने करि यह भाषा अभिराम ॥1421 ( ग्रंथांत ) इस भाषाटीका का रचनाकाल सं. 1764 ( 1707 ई.) फाल्गुन 5 रविवार दिया है'संवत् सतेरेसय चौसठि समै, फागुन मास सब जन को रमै । पांचमि तिथि अरु आदित्यवार, रच्यो ग्रन्थ देरै मारि ||41|| ( ग्रंथांत ) ग्रन्थ की रचना 'देर' ( ? ) नामक स्थान में की गई थी । यह रसविद्या ( रसशास्त्र ) संबंधी ग्रन्थ है 'रसविद्या में निपुण जु होइ, जस कीरति पाये बहु लोइ । जहां तहां सुख पावै सही, सो रस विद्या प्रगटाव कही ||44|| ( ग्रंथांत ) इसमें कुल 10 अध्याय हैं, जिनके नाम और पद्यसंख्या निम्नानुसार है 1 रसशोधन - कथन प्रथमोध्यायः 2 रसजारण- मारणादि - कथन द्वितीयोध्यायः 3 उपरस - शोधन - मारण - सत्वनिपात माणिक्य-शोधन मारंण-कथन तृतीयोध्यायः 4 विष - लक्षण, विष सेवा, विष परिहार कथन चतुर्थोध्यायः [150] पद्य 37 पद्य 68 पद्य 10 पद्य 32

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