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चरक को तथा द्वितीय पद्य में ब्रह्मा, ईश, गरुडध्वज, भृगुसुत ( च्यवन), भारद्वाज, गौतम, हारित, चरक, अत्रि, इन्द्र, धन्वन्तरि, माधव, नासत्य, नकुल, पराशरमुनि, दामोदर, वाग्भट और अन्य वैद्यों की स्तुति की गई है ।
इस ग्रन्थ की रचना संवत् 1792 (1735 ई.) माघ शुक्ला प्रतिपदा गुरुवार को जयपुर में की गई थी । उस समय वहां महाराजा जयसिंह का शासनकाल था'द्विनन्दमुनि भूवर्षे ( 2971=1792) मासे च माघसंज्ञके । शुक्लस्य प्रतिपदायां च भृगोश्चैव तु वासरे ॥ संपूर्ण क्रियते ग्रन्थं 'निर्णयं पथ्यलंघनं' |
'श्रीजैपुरै' महाराजे राज्ये 'जयसिंहभूपके ।।
( पाठांतर - श्रीजयपुरवरे रम्ये राज्ये 'जयसिंह' भूपतेः । )
संपूर्णो हि कृतो ग्रन्थ : 'पथ्यलंघननिर्णयः ॥' ( ग्रन्थांत, पद्य 298-299) अनेक शास्त्रों का अवलोकन कर अपनी बुद्धि के अनुसार इस ग्रन्थ की रचना की गई है—
'विद्वज्जनान् संपूज्य नमस्कृत्य गुरुप्रति ।
सर्वशास्त्राननुसंवीक्ष्य आत्मबुद्ध्यनुसारतः ॥ 297।।
पुन: कहा है, कि इसमें कुछ भी कपोलकल्पित नहीं है, केवल पूर्वाचार्यों के शास्त्र - बचनों का संग्रह है
'कपोलकल्पितं नास्ति पूर्वाचार्यानुसारतः ।
'वाचक दीपचंद्रेण' एकत्रिकृतशास्त्रतः ।।401" मया च मंदबुद्धया च कुर्यात्पथ्यनिर्णयः ।'
ग्रन्थ में कुल 304 पद्य हैं । इसमें ज्वररोग में लंघन व्यवस्था का विस्तार से. निरूपण है । इसी प्रसंग में लक्षण, ओर वैद्य की प्रशंसा का उल्लेख भी हुआ है ।
और लक्षण भी बताए गए हैं। चिकित्सा के दो प्रकार बताए हैं - कर्षणी ओर वृंहणी
'चिकित्सा द्विविधा प्रोक्ता वैद्यविद्याविशारदैः ।
सामे च कर्षणी प्रोक्ता निरामे वृहणी मता ।।14।।
1 प्रात्रेयधन्वन्तरि सुश्रुतानां नासत्यहारीतमाधवानां । - सुषेरणदामोदरवाग्भटानां दस्त्रस्वयभूचरकादिकानां ।। 8 ।। ब्रह्म शो गरुड़ध्वजो भृगुसुतो भारद्वाजों गौतमो
और पथ्य-अपथ्य की ग्रन्थ के प्रारम्भ में मूढवैद्य के विभिन्न प्रकार के ज्वरों के भेद
हारीतश्चरकोऽत्रिक- सुरगुरु-धन्वन्तरि-मधिवो
नासत्यो नकुल: पराशरमुनिः दामोदरो वाग्भटो
येऽन्ये वैद्यविशारदाः मुनिवसस्तेभ्यः परिभ्यो नमः || 9 || ( ग्रन्थारम्भ )
ये पद्य 'हंसराजनिदान' ( भिषक्चक्रचित्तोत्सव ) में भी मिलते हैं ।
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