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अनेक बार परीक्षण कर उनका संग्रह किया गया होगा । यह ग्रंथ उदयपुर में रचा गया था, अतः इसमें उदयपुर के आसपास मेवाड़ क्षेत्र में होने वाली अनेक वनस्पतियों का भी प्रयोग - व्यवहार बताया गया है । 'गांठिया झड' नामक वनौषधि मेवाड़ में होती है । इसकी अन्यत्र उत्पत्ति दुर्लभ है । यह उदयपुर के उत्तर में 14 मील दूर एकलिंगजी के निकट राष्ट्रसेना ( रायसेनजी ) की और आसपास की पहाड़ियों पर अधिक मिलती है । इसका वातनाशक और अस्थिसंधानक ओषधि के रूप में प्रयोग यहां प्राचीनकाल से प्रचलित है । किसी भी पशु या मनुष्य की हड्डी टूट जाने पर इसे पीसकर तीन दिन पिलाने से टूटी हुई हड्डी तीन दिन में ही जुड़ जाती है ।
इनमें संकलित प्रयोगों में से कुछ मेवाड़ के राजघराने में प्रचलित रहे । लेखक ने 'धातुस्तंभन' प्रयोगों में 'सिंहवाहनी गुटिका' का प्रयोग लिखा है, जिसे 'महाराणा कु भा' सेवन करते थे । यद्यपि द्रव्यगुणविज्ञान की दृष्टि से इसमें साधारण द्रव्य ही पड़ते हैं, परन्तु गुण की दृष्टि से यह गुटिका अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध हुई है । इसी प्रकार 'राजा जगन्नाथ' की 'कामेश्वर गुटिका' भी वर्णित है ।
राजा - रईस और अन्य व्यक्ति शत्रु के लिए विषप्रयोग करते थे । विशेषकर मंद विष भोजन आदि में खिला देते थे । इसमें बाघ की मूंछ का बाल मुख्य माना जाता था । इसके लिए इस विष के लिए 'वाघ बाल विष नाश' के प्रयोग भी दिए हैं ।
तत्कालीन प्रचलित मानों- मासा, तोला, कर्ष आदि का भी इसमें वर्णन है । लेखक के समसामयिक महाराणा राजसिंह और उसके पीछे तक मेवाड़ में शेरशाहसूरि के सिक्कों का प्रचलन रहा । इसी प्रकार 'द्रम्म' आदि सिक्के भी चल रहे थे । ग्रन्थ के प्रयोगों में परिमाण रूप में इन सिक्कों का उल्लेख किया गया है ।
इस
इस गुटके (संकलन) का नाम स्वयं लेखक ने 'आयुर्वेदसारसंग्रह' रखा है । रचनाकाल सं. 1759 (1702 ई.) है, जैसा ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है
इसका
"सं. 1759 वर्षे श्रीश्री विधिपक्षे (? विजयगच्छे ) श्री भट्टारक श्रीमद् 118 विनयसागरसूरिजी तिथो शुक्रवासरे, लिपिकृतं पीतांबरजी उदयपुर नगरे राजाधिराज ....... राज्ये आयुर्वेदसारसंग्रह संपूर्णम् ।"
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इसकी मूलप्रति मुनि कांतिसागर को प्राप्त हुई थी । भाषांतर कर उन्होंने 'आयुर्वेदना अनुभूत प्रयोगा' नाम से (गुजरात ) से प्रकाशित कराया है ।
इस ग्रंथ को गुजराती में
ई. 1968 में पालीताणा
जोगीदास मथेन या 'दासकवि' ( 1705 ई.)
यह बीकानेर के रहने वाले श्वेतांबर जैन थे । इनके पिता का नाम जोशीराय
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