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जन्म गुजरात के अहमदाबाद नगर में हुआ था । उनके पिता का नाम 'देवराज' और माता का नाम राजुलदे था । पिता श्रीमाली महेता थे, जिनको वहां के महमद सुलतान ने सम्मान दिया था। कर्मसंयोग से इनको मारवाड (मारूदेश) के सिरोही नगर में आकर रहना पड़ा और वे वहीं बस गये । नरबुद ने बाल्यावस्था में उम्र के 9वें वर्ष गुरु (कनक) के पास दीक्षा ले ली थी। भवबंधन छोड़ दिये। तेरहवें वर्ष में इन पर मातंगी ने प्रसन्न होकर वरदान दिया।
'देई दीक्षा ने दीधो मंत्र, श्री सरस्वती बांध्यो तंत्र । दाणा दिवस में सेवा करी, श्री सारद करणा आदरी ।।73।। वर्षे तेर मैं आव्यो मान मातंगी दीधो वरदान । श्री गुरुचरण पसाई करी, कविजन मति नरबद आचरी ।।74।। (वही, ग्रंथांत)
गुरु की अनुजा लेकर इन्होंने दक्षिण देश की ओर कौतुक से विहारकर्म किया । चलते चलते ये संयोगवंश खानदेश (महाराष्ट्र) में 'बुरहानपुर' आये। वहां पास ही 'असीरगढ़' नामक दुर्ग है। वहां फारक जाति के 'मीरां दलशाह' के पुत्र 'मीरां बहादुर शाह थारकी' का शासन था।
दक्षण देश प्रति कीयो विचार, कौतुकयौ आ देश अपार । अनेक बोधवीया जीवनै कवि मंदगति पामि देशनै ।।76।। देवयोग चालतां सही, 'खानदेश मैं आव्या वही । गढ़ 'आसेर' तिहां अभिराम, 'बरह पुर' नगरनो नाम ।।7711 राज बलवत सुजाण, वेरीना भाजै भड ठाण । सदा अभंग तरबारह तेज, जाति ‘फारक' कलाविवेक ।।78।। 'मीरांह दलसाह' सुजाण, तास पूत्र बलवंत बखाण ।
मीरां बहादुर साह थारकी', कीरत छणी न जायु लखी ।।79।। वहां (बुरहानपुर में) रहते हुए आचार्य नरबुद ने वि. संवत् 1656 शक संवत् (152 . 1600 ई.) विजयादशमी बुधवार को 'कोकशास्त्र चतुष्पदी' नामक ग्रन्थ की रचना पूर्ण की थी। उस दिन शुभ मुहूर्त-वेला और ग्रह नक्षत्रों के उत्तम लक्षण थे
'संवत ‘सोल छपने सार', शक ‘पनर एकवीस मझारि । धतू अयम दक्षिणदिश रवि, शरदशपति माहि बाल कवि ।।801 आसु अधिक महोछव मास, पक्ष अजू आलें शशि प्रकाश । 'विजया दशमी' मन आणंद, 'वासर बुध' सुख परमाणंद ।।81।। उत्तरा आषाढ़ नक्षत्र सुविचार, श्री 'नरबुद' बोलें कविराज । कर्क राशि गुरु ग्रह भोगवै, तुले शनि आवण चीतवै ।।82॥ शुभ मुहरत शुभ वेला सार, उत्तम लक्षण तणो विचार । श्री 'नरबुद' बोले 'कविराज' , कवी चोपई संपूरण आज ।।83।।
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