Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 154
________________ 'इति श्री वणारस पद्मरंग गणि शिष्य रामचंद विरचिते श्री वैद्यविनोदे नेत्रप्रसादन कल्प समाप्त । इति श्री वैद्यविनोद संपूर्ण । ग्रंथ संख्या 3700 ।' इस ग्रंथ में तीन खंड हैं। इनमें क्रमशः 7, 13 और 13 अध्याय हैं। प्रत्येक खंड में पद्यसंख्या क्रमशः 456, 1292, 770 है। कुल 2525 पद्य हैं या 253 गाथाएं है। कवित्त दोहा, चौपाई छंदों का प्रयोग हुआ है। ___दानसागर भंडार बीकानेर में इसकी सं. 1820 फा. सु. 6 की हस्तलिखित प्रति मौजूद है। (3-4) नाड़ीपरीक्षा और मानपरिमारण रामचंद्रयति की ये दोनों रचनाएं पृथक् से भी मिलती हैं। किन्तु रामविनोद की किसी-किसी हस्तप्रति में मानपरिमाण के पद्य उसी में सम्मिलित मिलते हैं। अतः ये दोनों रचनाएं स्वतंत्र न होकर 'रामविनोद' के ही अंश या पृथक्-पृथक् अध्याय हैं । 'नाड़ीपरीक्षा' में कुल 45 पद्य हैं। भाषा राजस्थानी-हिन्दी है। अंतिम पद्य इस प्रकार है 'सौम्य दृष्टी सुप्रसन्न भालीय, प्रकृति चित्त इहु दुख सहू की रालीय । शीघ्र शांति होइ रोग सदा सुख संदही, 'नाडि परीक्षा' एह कही 'रामचंदही ।।45।।' 'मानपरिमाण' में कुल 13 पद्य हैं । (5) सामुद्रिक भाषा (1665 ई.) शारीरिक लक्षणों को देखकर आयु का निर्धारण करने का विधान आयुर्वेद में बताया गया है। इसी प्रकार शारीरिक लक्षणों से व्यक्ति के भाग्य, भविष्य, सुख दुःख, व्यवहार आदि का ज्ञान किया जाता है। इस प्रकार सामुद्रिकविद्या आयुर्वेद और ज्योतिष दोनों से संबंधित है। इस में स्त्री और पुरुष के पृथक् से लक्षणों का विचार किया जाता है । ये लक्षण मस्तक से पैरों तक देखे जाते हैं। ग्रन्थारंभ में सरस्वती वन्दना करते हुए सामुद्रिक शास्त्र का विषय लेखक ने बताया है 'सरसति समरू चित्त धरि, सरस वचन दातार । 'नरनारी लक्षन' कहुं, 'सामुद्रक' अनुसार ।। 1 ।। 'सामुद्रक' ग्रन्थ में कहे, आगम नियम की बात । इसह जांण जो नर हुवइ, ते होई जग विख्यात ।।2।। आदि अन्त नर नार की, सुख दु:ख वात सरूप । कुहं अनेक प्रकार विध, सुणो एकंत अनूप ।।3।। प्रथम पुरुष लक्षण सुणों, मस्तक पाद पर्यन्त । छत्र कुभ सम सीस जसु, ते हुवै अवनी-कंत ।।4।।' इस ग्रन्थ की रचना 'वितस्ता नदी के किनारे 'मेहरा' (पंजाब) नामक स्थान पर मुगल शासक 'औरंगजेब' के शासनकाल में हुई थी। रचनाकाल सं. 1722 (1665 ई.) माघ कृष्णा 6 दिया है [ 144 ]

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