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तथापि इनके ग्रंथों की उपलब्धि विशेषरूप से राजस्थान में होने से तथा भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होने से इनका राजस्थानी होना पुष्ट होता है । यह 'बीकानेर क्षेत्र' के निवासी थे। 'मूलदेव चो,' की स्चना स. 1711 में नोहर में की 'श्रीमाल चौ.' सं. 1725 बीकानेर में बनाई।
इनका वैद्यक और ज्योतिष-सामुद्रिक विद्या पर अच्छा अधिकार था। इनके पूर्व गुरु भी वैद्यक में निष्णात थे। इन्होंने वैद्यक पर 'रामविनोद' और वैद्यविनोद' की तथा ज्योतिष-सामुद्रिक पर 'सामुद्रिकभाषा' नामक ग्रंथ की रचना की थी। इनके 'काव्य' संबंधी चार-पांच ग्रंथ भी मिलते हैं। ये सब ग्रंथ राजस्थानी हिन्दी में पद्यमय हैं। कुछ फुटकर भक्तिपरक पद्य भी मिलते हैं । इनकी सब रचनाएं सं. 1720 से 1750 (1663-1693 ई.) के वीच रची गई थीं।
(1) रामविनोद-(सं. 1720-1663 ई.)-यह चिकित्साविषयक ग्रंथ है । मुगल बादशाह औरंगजेब के राज्यकाल में इसकी रचना पंजाब के बन्नु देशवर्ती सक्की नगर (सिंध) में सं. 1720 मिगसर सुदि 13 बुधवार को हुई थी। यह ग्रंथ लखनऊ से प्रकाशित हो चुका है ।।
यह ग्रंथ पद्यमय सुललित शैली में लिखा गया है। इससे कवि की विद्वत्ता और कवित्व प्रतिभा का अच्छा परिचय मिलता है। आयुर्वेद के अधिकांश ग्रथ संस्कृत में हैं। जनसामान्य के लिए संस्कृत भाषा दुरुह है। 'रामविनोद' की रचना में कवि ने चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, वाग्भट, योगचिंतामणि, राजमार्तण्ड, रसचिंतामणि आदि आयुर्वेद के संस्कृत-ग्रंथों का आधार लिया है ।
यह ग्रंथ 7 समुद्देशों में पूर्ण हुआ है और इसमें कुल 1981 गाथाएं (दोहा, सोरठ, चौगाई) हैं। नथ की समाप्ति के बाद भी इसमें 'नाडीपरीक्षा' संबंधी 53 गाथाएं और 'मानप्रमाण' संबंधी 13 गाथाएं दी गई हैं। कहीं-कहीं ये स्वतंत्र रचनाओं के रूप में प्राप्त हैं। (2) वैद्यविनोद -यह ग्रंथ 'शाधरसंहिता का पद्यमय भाषानुवाद (राजस्थानीहिन्दी में है। आयुर्वेद में चिकित्सा की दृष्टि से शाङ्गधर कृत शार्ङ्गध संहिता का अन्यतम स्थान है। यह संस्कृत में है। रामचंद्र यति ने इसका गुरु से अध्ययन किया, फिर भाषा-बन्ध रचा। साधारण जनों के सूख-बोध के लिए लेखक ने इसकी रचना की थी, जैसा कि ग्रंथारंभ में लिखा है
1 "मिश्रबन्धुविनोद' (पृ. 466) में रामविनोद का नाम रायविनोद' लिखा है। इसके कर्ता रामचंद्र को साकी बनारस का निवासी और पध्मराग का शिष्य बताया गया है। वस्तुतः ग्रंथ का नाम रामविनोद, कर्ता-रामचंद्रयति ने विहार करते हुए सक्की नगर (सिंध) में इसकी रचना की थी। इनके गुरु का नाम पद्मरग था ।
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