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बीररस काव्य का प्रणथन किया था ।
कृतित्व- वैद्यक पर मुनि मानजी की दो रचनाएं मिलती हैं(1) कविविनोद (2) कविप्रमोद | इनकी अन्य रचना 'वैद्यकसारसंग्रह' भी बतायी जाती है । के 14वें खोज विवरण, पृ. 617 पर इस कृति का उल्लेख है तथा पृ, 47 पर लिखा है - " इसी विषय का दूसरा ग्रन्थ 'वैद्यकसारसंग्रह' जो इन्हीं का रचा जान पड़ता है ।"
(1) कविविनोद (1688 ई.)
यह ग्रन्थ औषधि और रोमों के निदान - चिकित्सा के संबंध में लिखा गया है
'गुरु प्रसाद भाषा करू, समझ सकै सब कोई 1
ओषद रोग निदान कछु, 'कविविनोद' यह होई ||511 ( ग्रन्थारम्भ )
नागरीप्रचारिणी सभा 15 वें खोज विवरण
और मिलता है,
यह हिन्दी - राजस्थानी में पद्यबद्ध रचना है। इसकी रचना लाहोर में सं. 1745 (1688 ई.) वैशाख शुक्ला 5 सोमवार को हुई थी
'संवत सतरहसइ समइ, पैंताले वैशाख ।
शुक्ल पक्ष पंचम दिनइ, सोमवार यह भाख ||9||
'कियो ग्रन्थ 'लाहोर' मई, उपजी बुद्धि की वृद्धि ।
जो नर राखे कंठ मइ, सो होवै परसिद्ध ||13|| ( ग्रन्थारम्भ )
इस ग्रन्थ में दो खण्ड हैं । प्रथम खंड में औषधिकल्पनाएं काढ़ा, चूर्ण, गुटी योगों का संग्रह किया गया है
दी गई हैं ।
" और ग्रन्थ सब मथन करि, भाषा कहौ बखांन ।
काढ़ा औषधि चूर्ण गुटी करें प्रगट मतिमांन ||10|| (ग्रन्यारंभ में
प्रथम खंड के अन्त में लिखा है
'गुनपानी अरु क्वाथ क्रम, कहे जु आद के खंड ।
खरतर गच्छ मुनि मांनजी, कियो प्रगट रह मंड || 6511
द्वितीय खंड में ज्वर का निदान, चिकित्सा, तेव्ह प्रकार के सन्निपात के निदान और चिकित्सा का विवरण है
1
डा. मोतीमाल मेनारिया, राजस्थानी भाषा और साहित्य, प्र. सं. 1948),
g. 162-.63
एक अन्य 'मान' खरतरगच्छीय उपाध्याय शिवनिधान के शिष्य थे इनके राजस्थानी में कोई ग्यारह ग्रंथ मिलते हैं । इनके ग्रंथों का रचनाकाल सं. 1 80 से सं. 1693 दिया हुआ है । अतः ये पूर्ववर्ती थे । रा. हि. ह. ग्र खोज. भाग 2, पृ. 14 ) ।
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