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शिष्य थे। चन्द्रकीर्तिसूरि ने अनुभूतिस्वरूपाचाय की 'सारस्वतप्रक्रिया' पर टीका लिखी थी। यह दिल्ली के मुस्लिम शासक सलेमशाह (1545-1553 ई.) के समकालीन थे और इनको उस शासक ने सम्मानित भी किया था
___ 'श्रीमत्साहिसलेम भूमिपतिना संमानित सादरं । ..
'सूरिः सर्वकलिंदिकाकलितधी: 'श्रीचंद्रकीतिः' प्रभुः ।। (आर. जी. भांडारकर की रिपोर्ट 1882-83, पृ. 43-पृ 227 पर उद्धृत अंश) मो. द. देसाई ने लिखा है कि पव॑चद्रगच्छ के राजचन्द्रसूरि (जन्म सं. 1606, आचार्य 1626, स्व. 1669 के समकालीन राजरत्नसूरि के शिष्य चंद्रकीतिसूरि थे । रत्नशेखर सूरि की परम्परा में इनकी गुरुशिष्य -परम्परा इस प्रकार मिलती है ----
रत्नशेखर सूरि पूर्णचन्द्र हेमहंस हेमसमुद्र जय शेख
सोमरत्न
राजरत्न सूरि
चन्द्रकीनिरि
हर्षकी सूरि * का नाम मानकीति लिखा ह, द्वितीय- 'प्रथम अध्याय के अन्त में जो श्लोक ह उससे पता चलता है कि हर्षकीति नागपुर का रहने वाला था ।' पुन: प्रागे लिखा है - लेखक नागपुर के तपागच्छ स्थान का निवासी था'। तृतीय - 'ग्रन्थ के अन्त में लेखक ने अपने को प्रवरसिंह संभवत. कोई राजा) के शिर का अतंस कहा है। और गुरु का नाम चंद्रकीति बतलाया है।' (आयुर्वेद का वैज्ञानिक इतिहास, 1975, पृ. 216 - 17)इन तीनों भ्रातियों का निराकरण मेरे द्वारा दिये गये विवरण
से स्वतः हो जाता है । 1 'धातुतरंगिणी' में हर्षकीतिसूरि ने अपनी परम्परा के भट्टारक यति पद्ममेरु के शिष्य पद्मसुन्दरगरिण द्वारा अकबर को सभा में किसी पंडित को पराजित करने और स्वय सम्मानित होने का उल्लेख किया है। पद्मसुन्दर को रेशमी वस्त्र, पालकी और गांव भेंट में मिले थे। इनको जोधपुर के राजा राव मालदेव से सम्मान मिला था
साहेः ससदि ‘पद्मसुदरगरिणजित्वा' महापंण्डितं क्षौम - ग्राम-सुरवासनाद्यकबरश्रीसाहितो लब्धवान् । हिन्दूकाधिपमालदेवनृपतेर्मान्यो वदान्योऽधिकं
'श्रीमद्योधपुरे सुरेप्सितवचाः पद्माह्वयं पाठकम् ।।' पद्मसुदरगरिण की अकबरसाहिदर्पण', रायमल्लाभ्युदयकाव्य (वि. सं. 1615) आदि अनेक रचनाए हैं । ५ जैन गुर्जर कविप्रो. भाग 1, पृ. 470 --- 3 जैन गुर्जर कविप्रो, भाग 3, खण्ड 1, पृ. 944
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