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'श्रीनपविक्रम समये द्वादशनवषभिर किते वर्षे । रचिता 'गुणाक रेण' श्वेताम्बर भिक्षुणा 'विवृतिः ।।' आत्मस्मरणाय मया विवृता नागार्जुनप्रणीतेयम् ।
आश्चर्यरत्नमाला अग्रेतनवृद्धटीकातः ।। इस टीका की एक प्राचीन हस्तप्रति संवत् 1701 (1645 ई) की भांडारकर रिसर्च इन्टीट्यूट, पूना (ग्रथांक 175) में है ।
विजयरक्षित ते माधवनिदान की मधुकोष टीका में गुणाकर को उद्धृत किया है, डा. ए आर. हर्नले ने विजय रक्षित का काल 1240 ई. माना है । जो सही नहीं है ।
इससे स्पष्ट होता है कि गुणाकर आयुर्वेद वनस्पति शास्त्र और तंत्रविद्या के प्रकांड पण्डित थे। इन्होंने 'योगरत्नमाला' की टीका में अनेक तांत्रिक शब्दों और प्रयोगों का स्पष्टीकरण बड़ी खूबी से किया है। इससे उनका इस विद्या में प्रत्यक्ष अनुभव सिद्ध होता है। तंत्रविद्या भारत में परम्परा से प्रचलित रही थी। 'विवृति' मे गुणाकर ने 'निघण्टु' (कोश, द्रव्यगुण) को तीन स्थलों पर उद्धृत किया है (श्लोक सं. 11, 34 एवं 43)।
ये गुजरात, विशेषतः सौराष्ट्र क्षेत्र के निवासी थे। टीका में मधुयष्टीका 'जेठीमधु , रसांजन का 'रसवत', स्नुहीका ‘थोहरी', गोवत्सा का 'गोजीभी', अंगारिका' का 'कोइला' तथा भूनाग का अणसला' गुजराती पर्याय दिये हैं। एक स्थान (श्लोक 81) पर भूनाग के लिए लिखा है- 'भूनागो वर्षाकालोद्भवो जीवविशेषः, सौराष्ट्रदेशभाषया अणसला इति प्रसिद्ध : ।'
___ इन्होंने 'आश्चर्य रत्नमाला' पर गुजराती में 'अमृतरत्नावली' नामक टीका लिखी थी। इसको हस्तप्रति भांडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना में मौजूद है (ग्रथांक 174, 5:4/1892-95)। इसका रचनाकाल भी 1296 (1239 ई.) दिया गया है। यह टीका अधिक प्रसिद्ध नहीं हो सकी। इस टीका का अतिम अंश देखिए --- "अथादशीकरण कृष्ण धतूराने शनिवारें बंधन करोनूह तरीये रविव'रें सूर्योदयें लीजइं नग्नथईने पछे ते धतूर काष्ठ सात आदित्यवारपर्यन्त त्रिवटें चोवटानि भूमि मां डटीई पछे सात में रविवारे ति हाथीं ली, लेईने कृष्णचौदसिनी मध्य निशायें श्मशानना वलिथी बालीने रक्षा कीजें पछे ते रक्षा प्रथमप्रसूता स्यांमा गायनी घीमध्ये मथीने नेत्रांजन कीजें तो अद्दश्यकरण पुरुष होयें सत्यमेव थाइं इणि प्रकार नागार्जुनाचार्येण प्ररूपीता आश्चर्य
1 माधवनिदान' अ. 5 श्लो. 35 पर 'मधुकोष' में 'कुक्षेराटोपो ‘गुडगुडाशब्द इतिचक्रः,
'तनतनी' इति गुणाकर, ‘रुजापूर्वकः क्षोभः' इति गदाधरः ।' . A. F. Hoernle, Studies in the Medicine of Ancient India, part I,
Section I, Introduction.
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