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श्रीमदर्जुनभूपालराज्ये श्रावकसंकुले । जिनधर्मोदयार्थ यो नलकच्छपुरेऽवसत् ।।8।।
इससे ज्ञात होता है कि आशाधर सपादलक्ष (सवालखा=मध्यराजस्थान) के शाकंभरी राज्य (चौहानों के राज्य) के अन्तर्गत 'मंडलकर दुर्ग' (मांडलगढ़, जिला भीलवाड़ा) के निवासी थे । जब गजनी के शासक मोहम्मद गोरी ने ई. 1193 में अजमेर प्रान्त पर अधिकार कर लिया तो मुसलमानों के अत्याचारों से रक्षा करने के लिए अनेक परिवारों के साथ आशाधर का परिवार भी वहां से धारा नगरी (मालवा) में आकर रहने लगा। ये व्याघ्र रवाल ( बघेरवाल) जाति के दिगम्बर जैन वैश्यश्रावक थे । इनके पिता का नाम सल्लक्षण माता का नाम रतनी, पत्नी का नाम सरस्वती और पुत्र का नाम छाहड़ था । धारा में इन्होंने व्याकरण और न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। कुछ समय बाद धारा के पास बीस मील दूर 'नलकच्छपुर' (नालछा) में आकर बस गये और आजीवन वहीं रहे । आशाधर की रचनाओं में मालवा (धारा) के राजा विंध्यवर्मा, अर्जुनवर्मा, देवपाल और जैतुगिदेव का उल्लेख मिलता है, जिनके द्वारा उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ था।
आशाधर जैनमुनि नहीं थे । गृहस्थ रहते हुए भी ये संसार से उपरत रहे । नाथूराम प्रेमी ने इनका जन्मकाल सं 1.35 के लगभग सिद्ध किया है। इनकी सब रचनाएं सं. 1260 से 1300 के बीच की मिलती हैं। इनका उपलब्ध अन्तिम ग्रन्थ 'अनगार-धर्मामृतटीका' वि.सं 1300 का है ।
आशाधर के 20 से भी अधिक ग्रन्थ मिलते हैं, जो अधिकांश जैन सिद्धांत, धर्म, न्याय, व्याकरण पर हैं।
इनके एक वैद्यक ग्रन्थ का भी उल्लेख मिलता है। वाग्भट के प्रसिद्ध गन्थ 'अष्टांगहृदय' पर आशाधर ने 'उद्योतिनी' या 'अष्टांगहृदयोद्योतिनी' नामक टीका संस्कृत में लिखी थी । यह ग्रन्थ अब अप्राप्य है । स्वयं आशाधर ने अपनी एक अन्य ग्रन्थ-प्रशस्ति में लिखा है
'आयुर्वेदविदामिष्टं व्यक्तु वाग्भटस हिताम् ।
अष्टांगहृदयोद्योतं निबन्धमसृजच्च यः ।।1911 पीटर्सन ने अपनी सूची में आशाधर के ग्रन्थों में और आफेक्ट ने अपने कैटेलॉगस केटेलोगोरम में इस ग्रन्थ का उल्लेख तो किया है, परंतु किसी हस्तलिखित प्रति का संदर्भ नहीं दिया है । अष्टागहृदय पर हेमाद्रि लगभग 1260 ई.) के पूर्व बाशाधर ने
1 पीटर्सन, रिपोर्ट 3, एपेण्डिक्स, पृ. 330, और रिपोर्ट 4, पृ. 26
नाथूरामप्रेमी, जैनसाहित्य और इतिहास, पृ. 133-- . Catalogus Catalogorum, Part I, P. 36
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