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के आरम्भ में 'अनेकार्थ-कैरवाकर-कौमुदी' नामक टीका लिखी है। इस टीका में अनेक कोशों को उद्धृत किया गया है-विश्वप्रकाश, शाश्वत, रभस, अमरसिंह, मंख, हुग्ग, व्याडि, धनपाल, भागुरि, वाचस्पति, यादव की रचनाएं, धन्वन्तरिकृत निघण्टु और लिंगानुशासन । 3. देशीशब्दसंग्रह - इसे 'देशीनाममाला' या 'रयणावली' (रत्नावली) कहते हैं। यह देश्य (देशी) शब्दों का कोश है। ऐसा कोश अब तक नहीं रचा गया । इसमें कुल 783 गाथाएं हैं और कुल 8 वर्ग हैं। इसमें एकार्थ और अनेकार्थ शब्दों का आख्यान है। इस के पूर्व ही कुछ देशी शब्दकोश लिखे गये थे। प्रारम्भ की दूसरी गाथा में बताया गया है कि पादलिप्ताचार्य आदि द्वारा विरचित देशी कोशों के होते हुए भी किस प्रयोजन से इस ग्रंथ को लिखा है। तीसरी गाथा में लिखा है- 'जो शब्द संस्कृतव्याकरणों के नियमों से सिद्ध नहीं होते, न संस्कृत कोशों में मिलते हैं और न अलकारशास्त्र में प्रसिद्ध गौडी लक्षणाशक्ति से अभीष्ट अर्थ मिलते हैं, उनको देशी मानकर इस कोश में निबद्ध किया गया है
'जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु ।
ण य गउडलक्खणासत्तिसंभवा ते इह णिबद्धा ।।3।। 4. निघण्टुशेष—में उन वनस्पति-नामों का संग्रह जो 'अभिधानचिंतामणि' में निवद्ध नहीं किये गये हैं।
___ आचार्य हेमचंद्र ने छंदशास्त्र पर 'छन्दोनुशासन' और योगशास्त्र पर 'योगशास्त्रटीका सहित' भी ग्रंथ लिखे हैं। अन्य ग्रन्थ भी मिलते हैं।
गुणाकर (1239 ई.) यह सिद्धघटीय श्वेताम्बर साधु या भिक्षु थे। इन्होंने नागार्जुन कृत 'योगरत्नमाला' या 'आश्चर्यरत्नमाला' पर 'विवृति' या 'लघुविवृति' नामक टीका लिखी है ।। इसकी अन्तिम पुष्पिका में लिखा है - ___'इति 'श्री सिद्धघटीय' श्वेताम्बर पण्डित 'श्री गुणाकर' विरचिता 'श्रीनागार्जुन' प्रणीत 'योगरत्नमाला लघुविवृतिः' समाप्तिमगमत ।'
इसकी रचना वि. सं. 1296 (1239 3.) में की गई थी। इससे पूर्व भी इस ग्रन्थ पर अनेक बड़ी टोकाएं विद्यमान थीं।
1 'योगरत्नमाला' सहित यह टीका (विवृति) प्राचार्य प्रियव्रत शर्मा द्वारा संपादित होकर चौखम्भा प्रोरियंटालिया, वाराणसी से सन् 1977 में प्रकाशित हुई है।
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