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'रिष्टं दोषं प्रवक्ष्यामि सर्वशास्त्रेषु सम्मतम् ।
सर्वप्राणिहितं दृष्टं कालारिष्टं च निर्णयम् ।।' ग्रन्थ में कहीं पूज्यपाद का नाम नहीं है, किन्तु अन्त में 'पूज्यपादविरचितम्' ऐसा लिखा है। मदनकामरत्नम्
यह मुख्यतया कामशास्त्र एवं वाजीकरण विषयक ग्रन्थ है। इसमें प्रारम्भ में महापूर्णचंद्रोदय, अग्नि कुमार, ज्वरबलफणिगरूड़, कालकूट, रत्नाकर, उदयमार्तण्ड, सुवर्णमाल्य, प्रतापलंकेश्वर, बालसूर्योदय और अन्य ज्वर आदि रोगों के लिए रसयोग, कपूर के गुण, मृगहारभेद, कस्तूरीभेद कस्तूरीगुण, कस्तूर्यनुपान, कस्तूरीपरीक्षा, कामदेव के पर्याय, 34प्रकार के कामेश्वररस, वाजीकरण औषध, तैल, लिंगवर्धनलेप, पुरुषवश्यकारी औषध, गुटिका निर्माण की विधि, काम सिद्धि के लिए मंत्र प्रयोग आदि विषयों का निरूपण है ।
ग्रन्थ अपूर्ण और पद्यबद्ध है - इसका कर्ता पूज्यपाद कहा गया है। नेत्रप्रकाशिका
यद्यपि यह ग्रन्थ नन्दिकेश्वर द्वारा विरचित बताया गया है, परन्तु ग्रन्थारम्भ में लिखा है कि पूज्यपाद ने इसका हयग्रीवमुनि के लिए उपदेश दिया था
"पूज्यपादस्तथा सम्यग् हयग्रीवमुनि प्रति ।
उवाच वचनं पुण्यं कैवल्यफलदं शुभम् ।।" इसमें नेत्ररोगचिकित्सा उमामहेश्वरसंवाद के रूप में वर्णित है । यह सिद्ध-ग्रंथ है। रत्नाकरौषधयोगग्रंथ (रत्नाकराद्यौषधयोगग्रंथ)
यह पूज्यपादकृत रचना है । समाधिशतकम् -- पूज्यपादकृत । सिद्धान्तिभाष्यम्- यह निदानमुक्तावली का भाष्य है ।
इसके कर्ता स्वयं पूच्यपाद हैं। 'निदान मुक्कावली' की पुष्पिका में लिखा है"श्रीमज्जठर देशिकमन्त्रवादषड़भाषाकविचक्रवर्तिश्रीपूज्यपादस्वामिविरचिते सिद्धान्ति भाष्ये अरिष्ट निदानो द्वादशोध्यायः ।"
1 राजकीय हस्तलिखित ग्रंथागार, मद्रास, ग्रंथांक 13161, 13162, 13163 । राजकीय हस्तप्रति ग्रंथागार मद्रास, ग्रंथांक 13299; इस पर तेलुगु में अर्थ भी
दिया हुआ है। • सरस्वती महल लाइब्रेरी, तंजौर, ग्रंथांक 11073 + राजकीय हस्तलिखिन ग्रंथागार, मद्रास, ग्रंथांक 13190, 13191 5 वही पृ. 14794 6 राजकीय ह. ग्रंथागार, मद्रास, केटलॉग, खंड XXIII. पृ. 8858, 'निदानमुक्तावली'।
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