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डा. ज्योतिप्रसाद जैन ने भी यही उल्लिखित किया है कि विष्णुवर्धन चतुर्थ चालुक्य राजा के काल में श्रोनन्दि सम्मानित हुए थे ।। निवासस्थान और काल-उग्रादित्य की निवास भूमि - 'रामगिरि' थी, जहाँ उन्होंने श्रीनन्दि गुरु से विद्याध्ययन तथा 'कल्याणकारक' ग्रंथ की रचना की थी। कल्याणकारक में लिखा हैं"वेंगीशत्रिकलिंगदशजननप्रस्तुत्यसानूत्कट: प्रोद्यवृक्षलताविताननिरतः सिद्धश्च
विद्याधरः । सर्वे मंदिर कंदरोपमगुहाचैत्यालयालंकृते रम्ये रामगिरी मया विरचितं शास्त्रं हितं
प्रणिनाम् ।।
(क. का. परि. 20, श्लोक 87) 'स्थानं रामगिरिगिरीन्द्रसदृशः सर्वार्थसिद्धिप्रद्र' (क. का., पृ. 21, श्लोक 3)
'रामगिरि' की स्थिति के विषय में विवाद है। श्री नाथूराम प्रेमी का मत है कि छत्तीसगढ़ महाकौशल) क्षेत्र के सरगुजा स्टेट का रामगढ़ ही यह रामगिरि होगा। यहां गुहा, मंदिर और चैत्यालय हैं तथा उग्रादित्य के समय यहां सिद्ध और विद्याधर विचरण करते रहे होंगे।
उपर्युक्त पद्य में रामगिरि को त्रिकलिंग प्रदेश का प्रधानस्थान बताया गया है। गगा से कटक तक के प्रदेश को उत्कल या उत्तरकलिंग, कटक से महेन्द्रगिरि तक के पर्वतीय भाग को मध्यकलिंग और महेन्द्रगिरि से गोदावरी तक के स्थान को दक्षिण कलिंग कहते थे । इन तीनों की मिलित संज्ञा 'त्रिकलिंग' थी।
कालिदास द्वारा वणित रामगिरि भी यही स्थान होना चाहिए जो लक्ष्मणपुर से 12 मील दूर है। षद्मपुराण के अनुसार यहां रामचन्द्र ने मंदिर बनवाये थे। यहां पर्वत में कई गुफाएं और मंदिरों के भग्नावशेष हैं।
वस्तुतः, यह रामगिरि, विजगापट्टम जिले में 'रामतीर्थ' नामक स्थान है। यहां पर 'दुर्गपंचगुफा' की भित्ति पर एक शिलालेख भी है। इसमें किसी एक पूर्वीय चालुक्य के संबंध में जानकारी दी हुई है। यह शिलालेख ई. 1011-12 का है। इमसे यह प्रकट होता है कि रामतीर्थ जैनधर्म का एक पवित्र स्थान था यहां पर अनेक जैन अनुयायी रहते थे। उक्त शिलालेख में रामतीर्थ को रामकोंड भी लिखा है। प. कैलाश चन्द्र के अनुसार-'ईसवीसन् की प्रारंभिक शताब्दियों में रामतीर्थ में बौद्धधर्म के बहुत अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह उल्लेखनीय है कि बौद्धधर्म के पतनकाल में कैसे जैनों
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1 डा. ज्योतिप्रसाद जैन; भारतीय इतिहास, एक दृष्टि; पृ. 290 2 नाथूलाल प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 212 ३ वही पृ. 2:2
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