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सत्व' निकले और उस बालक की कथा सुनकर आदेश दिया कि 'नालेन्द्र' विहार को चला जा, वहां जाने से मृत्यु से बच जायेगा। 'नालेन्द्र' अथवा 'नालिन्दा' मगध देश में बौद्धों का एक बड़ा विहार तथा महाविद्यालय था । उसमें भर्ती होकर यह बरारी बालक अन्यन्त विद्वान् और बौद्धशास्त्रवेत्ता हो गया। इसके व्याख्यान सुनने को अनेक स्थानों से निमंत्रण आये। उनमें से एक नाग-नागिनियों का भी था । 'नागों के देश' में तीन मास रह कर उसने एक धर्म-पुस्तक 'नागसहस्रिका' नाम की रची और वहीं पर उसको 'नागार्जुन' की 'उपाधि' मिली, जिस नाम से अब वह प्रख्यात है। रामटेक पहाड़ में अभी तक एक कन्दरा है जिसका नाम नागार्जुन ही रख लिया गया है।" (डॉ हीरालाल, मध्य प्रदेशीय भौगोलिक नामार्थ परिचय पृ. | -1 ) । उपसंहार- हमारे मत में भारतीय साहित्य में नागार्जुन नाम से तीन महापुरुष हो चुके हैं - (1) बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन- (पहली शती ई. पू. से ई. पहली शती कनिष्क व शातवाहन राजा के समकालिक । महायानप्रवर्तक । माध्यमिकदर्शन के प्रवक्ता । शून्यवाद के प्रवर्तक । 'सुश्रुतसंहिता' के प्रतिसंस्कर्ता, 'आरोग्य मंजरी' के कर्ता । (2) सिद्धनागार्जुन - (7वीं-8वीं शती) - इनका मुख्य कार्य क्षेत्र नालंदा रहा । रसशास्त्र, तंत्र और मंत्र में निपुण व प्रसिद्ध है। कक्षपुट, रसकक्षपुट, रस रत्नाकर, रसेन्द्रमंगल रतिशास्त्र के प्रणेता । (3) जैन सिद्ध नागार्जुन-(3रो शती)-इनका कार्य क्षेत्र ‘वलभी' सौगष्ट्र क्षेत्रान्तर्गत (सोमनाथ के निकट), और 'ढंकगिरि' रहा। जैन आगामों की वाचना तैयार करायी। वल्लभी में जैन मुनि सम्मेलन का संचालन । योगरत्नमाला, लोहशास्त्र और नागार्जुनीकल्प ग्रन्थों की रचना की। नागार्जुन संबंधी अन्य ज्ञातव्य -
_ 'योगशतक'- इसमें आयुर्वेद के आठ अंगों के अनुसार औषधयोगों का संग्रह है। कोई सौ योगों का संकलन है। विशेषता यह है कि अष्टांगों में 'वाजीकरण' के स्थान पर 'पंचकर्म' को परिगणित किया गया है। यह ग्रन्थ तिब्बती भाषा में अनुवादित हो चुका है, जिसकी पुष्पिका में इसे 'सिद्धनागार्जुन' द्वारा विरचित बताया गया है ।
फिर भी, वररुचि कृत योगशतक की अपेक्षा इस में कोई भिन्न पाठ नहीं है।
'योगशतक' के अनेक पद्य वृन्दमाधव (9वीं शती) और चक्रदत्त (11 वीं शती) में मिलते हैं। चक्रपाणि (11वीं शती और निश्चलकर ने इसको उद्धृत किया है।
तीसटकृत चिकित्साकालिका और योगशतक में विषयवस्तु का गठन प्रायः समान है।
_ 'पंचसूत्र' और 'भेषजकल्प' नामक दो अन्य ग्रन्थ नागार्जुन द्वारा रचित हैं, जो तिब्बती में अनुवादित होकर 'तंजूर' संग्रह में सुरक्षित हैं।
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