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'द्रव्यावलीनिविष्टानां द्रव्यानां नामनिर्णयम् । लोकप्रसिद्ध वक्ष्यामि यथागमपरिक्रमम् ॥
इस भाग को 'द्रव्यावली निघण्टु' कहा गया है । दिए हैं । इसमें भी द्रव्यावली के समान 7 वर्ग हैं1. गुडूच्यादि, 2. शतपुष्पादि, 6. सुवर्णादि, 7. मिश्रक ।
3. चंदनादि,
कुछ द्रव्य द्रव्यावली की अपेक्षा अधिक
4. करवीरादि,
ग्रन्थ के अन्त में लिखा है- 'इत्याद्युक्तानि बहुशो मिश्रीकृत्य समासतः । उक्तं निखिलेनेतद्धि निर्घण्टुज्ञानमुत्तमं ॥' भिषजा बुद्धिवृद्धयर्थं धन्वन्तरिविनिर्मितं । इति 'धन्वन्तरिकृतो' निर्घटः समाप्तः ।
इसी से यह पूराग्रन्थ 'धवन्तरिनिघंटु' कहलाता है । प्रणेता ज्ञात नहीं होते;
किया गया है—
वस्तुत: धन्वन्तरि इसके क्योंकि द्वितीय भाग के प्रारम्भ में धन्वन्तरि को नमस्कार
'नमामि धन्वन्तरिमादिदेवं सुरासुरैवंदितपादपद्मम् । लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं धातारमीशं विविधौषधीनाम् ।'
धन्वन्तरिकृत रचना होने पर स्वयं को नमस्कार वचन नहीं मिलना चाहिए। वास्तव में इसे वर्तमान रूप देने का कार्य कृष्ण - भौगिक पुत्र महेन्द्र जैन ने किया था । अन्त में वह अपना परिचय इन शब्दों में देता है
ग्रन्थ के
'कृष्णभोगिकपुत्रेण थानेश्वर निवासिना ।
'महेन्द्रभोगिकनेयं मत्ता 'द्रव्यावली' शुभा ।'
वर्तमान रूप में उपलब्ध था, हेमचंद्र धन्वन्तरिनिघंटु को उद्धृत किया है । होता है ।
5. आम्रादि,
वाग्भटीकाकार हेमाद्रि और अरुणदत्त ( 13वीं शती) के काल तक यह ग्रन्थ ( 12वीं शती), और मंख ( 12वीं शती) ने अतः इसका काल 11वीं शती होना प्रमाणित
जिनदास ( 12वीं शती)
यह जैन विद्वान् थे । इनका काल 12वीं शती माना जाता है । यह प्रद्युम्नक्षम के शिष्य बताये जाते हैं । इन्होंने चरकसंहिता पर कोई व्याख्या लिखी थी । इसके अतिरिक्त इनके 'जम्बूस्वामिचरित', 'कल्प भाष्य चूर्णि', 'कर्मदण्डी' आदि अन्य ग्रन्थ हैं ।
1 प्रियव्रत शर्मा, आयुर्वेद का वैज्ञानिक इतिहास, पृ. 213
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