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दुर्लभराज (12वींशती उत्तरार्ध) यह जैन विद्वान् गृहस्थ था । गुजरात के चालुक्यवंशीय शासक कुमारपाल (1143 से 1174) और उनके उत्तराधिकारी भीमदेव के मंत्री (अमात्य) पद पर रहा । इनका पुत्र जगदेव भी विद्वान् और कुमारपाल का मंत्री था--
'श्रीमान् दुर्लभराजस्तदपत्यं बुद्धिधामसुक विरभूत् ।
यं कुमारपालो महत्तमं क्षितिपतिः कृतवान् ।' इन्होंने 4-5 ग्रन्थ लिखे बताये जाते हैं -1 गजप्रबंध, 2 गजपरीक्षा, 3 तुरंगप्रबंध, 4 पुरुष-स्त्रीलक्षण, 5 स्वानशास्त्र या शकुनशास्त्र । संभवतः गजप्रबंध और गजपरीक्षा एक ही रचना है। 1 गजप्रबंध --
इसके अन्य नाम 'हस्तिपरीक्षा' और 'गजपरीक्षा' है। यह लगभग 1500 श्लोकों में पूर्ण हुआ है । 'जैन ग्रन्थावलि' (पृ. 361) में इसका उल्लेख है। इसमें हाथियों के प्रकार, लक्षण, गुण, विशेषताएं पालनाविधि आदि वर्णित हैं। इसकी रचना वि.सं.1215 (1158 ई.) के लगभग हुई थी। 2 तुरंगप्रबंध --
इसमें घोड़ों की जातियां, लक्षणों आदि का विवरण है। इसकी रचना भी वि. सं. 12 14 (1158 ई.) के लगभग हुई। 3 स्वप्नशास्त्र -
___ इसमें स्वप्नों के बारे में विस्तार से वर्णन है । इसमें कुल 311 श्लोक हैं । ग्रंथ में दो अध्याय हैं । प्रथम अधिकार में 152 श्लोकों में शुभस्वप्नों का विवरण है और द्वितीय अधिकार में 159 श्लोकों में अशुभस्वप्नों का विचार किया है। स्वप्नों से शकुन एवं भविष्य का ज्ञान किया जाता है । 4 सामुद्रिकतिलक -
इसका अपर नाम 'पुरुष-स्त्रीलक्षण' है । दुर्लभराज अपने जीवनकाल में इस रचना को पूर्ण नहीं कर सका, अत: उसके पुत्र जगदेव ने इसका शेष अंश पूरा किया । इसमें 800 आर्याएं हैं और पांच अधिकार हैं जिनमें क्रमश: 298, 99, 46, 188 और 149 पद्य हैं।
इस ग्रंथ में विस्तार से पुरुष और स्त्री के लक्षण बताये गये हैं ।
प्रथम अधिकार में पादतल से सिर के बालतक अंग-प्रत्यंगों का वर्णन और उनका शुभाशुभ विचार है । द्वितीय अधिकार में क्षेत्रों की संहति, सार आदि आठ प्रकार और पुरुष के बत्तीस लक्षण हैं। तृतीय अधिकार में आवर्त, गति, छाया, स्वर आदि विषयों का वर्णन है। चतुर्थ अधिकार में स्त्रियों के व्यञ्जन (लक्षण), स्त्रियों की बारह प्रकृतियां ( देव आदि), पद्मिनी आदि के लक्षण बताये हैं ।
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