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लाकर 'द्वारवती' (द्वारका) के प्रासाद मंदिर) में स्थापित की। वह नगरी जल कर जल प्लावित हो जाने पर भी वह बिम्ब (प्रतिमा) वैसा ही रहा । नागार्जुन ने अपने रस की सिद्धि के लिए सेडी नदी के तटपर उसे स्थापित किया । वहां सातवाहन राजा की चंद्रलेखा नामक पत्नी द्वारा प्रति दिन रसमर्दन करवाया गया । उसने इस कर्म की शिक्षा हेतु अपने दोनों पुत्रों को नागार्जुन के पास नियुक्त किया। रसके निर्माण की विधि को पूर्ण रूप से जान लेने के बाद उन दोनों ने सिद्ध रस को स्वयं ही प्राप्त करने की इच्छा से शस्त्र द्वारा नागार्जुन की हत्या कर दी । परन्तु वह रस 'संप्रतिष्ठित' और 'अधिष्ठानित' हो जाने से तिरोहित (गायब हो गया। जहां वह रस स्तंभित हुआ था, वहां स्तम्भनक (आधुनिक खंभात, गुजरात पार्श्वनाथतीर्थ प्रसिद्ध हुआ ।
_ 'प्रबंधचिंतामणि' के प्रथमसर्ग में 'शालिवाहन प्रबंध' में भी नागार्जुन का उल्लेख मिलता है।
स्पष्ट है कि नागार्जुन ढंकगिरि के निवासी होते हुए भी प्रतिष्ठानपुर के सातवाहन राजा के सम्पर्क में आये थे। यहां सातवाहन राजा का नाम नहीं मिलता । अनुश्रु ति है कि नागार्जुन ने रसवेध से सातवाहन राजा को भी दीर्घ आयु प्राप्त करायी थी । अतः उसने दीर्घकाल तक शासन किया होगा । सातवाहन वंशीय राजाओं को 'आंध्र' भी कहा जाता है, क्योंकि संभवत: ये मूलतः आंध्रप्रदेश के निवासी थे। ये नरेश ब्राह्मण थे । सातवाहन आंध्र जाति के राजाओं का वंश या कुलनाम था । उन्हीं का एक उपनाम सातकणि था, जो बाद में कुल नाम हो गया । पुराणों (विशेषकर 'मत्स्य' और 'वायु' पुराण) में इनके वंश का विस्तार से वर्णन है। सातवाहन राजाओं की वंशावलियों में बहुत मतभेद है। मत्स्यपुराण की सूची में 30 राजाओं के नाम हैं, यही सूची सबसे बड़ी है । पादलिप्तसूरिका समकालीन राजा हाल हुआ। उसके बाद सातवाहन राजाओं में दीर्घायुप्राप्त करने वाला राजा यज्ञश्री शातकणि हुआ,उसने 28वर्ष राज्य किया (मत्स्य व वायुपुराण के अनुसार) । उसका काल 128-157 ई. माना जाता है। नागार्जुन और सातवाहन राजा (यज्ञश्री शातकणि) के सम्बन्धों के विषय में विशिष्ट ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है । यह निश्चित है कि सातवाहनों का राज्य गुजरात और सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। गौतमीपुत्र सातकणि (65.86ई.) और उसके पुत्र पुलुमावि (वशिष्ठीपुत्र पुलुमावि) (86-114 ई.) के राज्यकाल भी दीर्घ रहे, क्रमशः 21 एवं 28 वर्ष । आंध्रों के शासन की दो राजधानियां रहीं, पूर्व में धानकटक, जिसे धरणिकोट भी कहते हैं और दूसरी पश्चिम में गोदावरी तट पर प्रतिष्ठानपुरं या पैठन । कभी-कभी पिता-पुत्रों ने एक ही काल में दोनों राजधानियों में शासन किये हैं। ऐसा रा. गो.
1 मेरुतुगाचार्य, प्रबंर्धाचतामणि, सर्ग 5, प्रकीर्ण प्रबंध, पृ. 308-12 २ जी. याजदानी, दकन का प्राचीन इतिहास, पृ. 71 ३ वही, पृ. 96
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