________________
सहेतुकास्सनविकारजातास्तेषां विवेको गुणमुख्यभेदात् । हेतुः पुनः पूर्णकृतं स्वकर्म ततः परतस्य विशेषणानि ॥11॥ स्वभावकालग्रहकर्मदैवविधातृपुण्येश्वरभाग्यपापम् । . विधिः कृतांतो नियतिर्गमश्च पुराकृतस्यैव विशेषसंज्ञा ।।12।। न भूतकोपान्न च दोषकोपान्न चैव सांवत्सरिकोपरिष्टात् ।। ग्रहप्रकोपात्प्रभवंति रोगाः कर्मोदयोदीरणभावतस्ते ॥13॥
___(क. का., प. 7/11-13) .अर्थात् 'शरीर में सब रोग हेतु के बिना नहीं होते। उन हेतुओं में गौण और मुख्य भेद से जानने की आवश्यकता होती है। रोगों का मुख्य हेतु पूर्णकृत कर्म है। शेष सब उनके विशेषेण अर्थात् निमित्त कारण हैं या गौण हैं।' . 'स्वभाव, काल, ग्रह, कर्म, देव, विधाता, पुण्य, ईश्वर, भाग्य, पाप, विधि, कृतांत, नियति, यम-ये सब पूर्णकृत कर्म के ही विशेष नाम हैं।' - 'न पृथ्वी आदि महाभूतों के कोप से, न दोषों के कोप से, न वर्षफल के खराब होने से और न ग्रहों (शनि, राहु मादि) के कोप से-रोग उत्पन्न होते हैं। अपितु, कर्म के उदय और उदीरण से ही रोग उत्पन्न होते हैं।'
फिर 'चिकित्सा' क्या है ? और उसका प्रयोजन क्या है ? इन प्रश्नों का भी आचार्य उग्रादित्य ने रोगनिदानानुरूप ही उत्तर प्रस्तुत किया है। 'कर्म की उपशमन क्रिया को चिकित्सा या रोगशांति कहते हैं।'
'तस्मात्स्वकर्मोपक्षमक्रियायाः .
- व्याधिप्रशांति प्रवदंति तज्ज्ञाः ॥' (क. का., 7/14) अपने कर्म का पाक दो प्रकार से होता है - 1 समय पर स्वयं पकना, 2, उपाय द्वारा पकना । इनकी सुन्दर विवेचना आचार्य ने की है
स्वकर्मपाको द्विविधो यथावदुपायकालक्रमभेदभिन्नः ।।1411.. उपायपाको वरघोरवीरतपःप्रकारेस्सुविशुद्धमामः । सद्यः फलं यच्छति कालपाकः कालांतराद्यः स्वयमेव दद्यात् ।। 15।। यथा तरूणां फलपाकयोगो मतिप्रगल्भः पुरुविधेयः । तथा चिकित्सा-प्रविभागकाले दोषप्रकोपो द्विविधः प्रसिद्धः ॥16॥ . आमघ्नसभेषजसंप्रयोगादुपायपाक प्रवदंति तज्ज्ञाः ।
कालांतरात्कालविपाकमाहुर्मू गद्विजानाथजनेषु दृष्टम् ।।171 (1) उपायपाक - श्रेष्ठ, घोर, वीर तपस्यादि विशुद्ध उपायों से कर्म का जबरन उदय कराना (उदयकाल न होने पर भी) जिससे वह. तत्काल फल देता है। इसे-'उदयपाक' कहते हैं।
.
...
[
69
]