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'चन्द्रय्य' नामक कवि ने कनड़ी में 'पूज्यपादचरित' लिखा था | इस चरित्र के अनुसार - "कर्नाटक देश के 'कोले' नामक ग्राम के 'माधव भट्ट' नामक ब्राह्मण और 'श्रीदेवी' ब्राह्मणी से पूज्यपाद का जन्म हुआ । ज्योतिषियों ने बालक को त्रिलोकपूज्य बतलाया, इस कारण उसका नाम 'पूज्यपाद' रक्खा गया । माधव भट्ट ने अपनी स्त्री के कहने से जैनधर्म स्वीकार कर लिया । अट्टजी के साले का नाम 'पाणिनी' था, उसे भी उन्होंने जैनी बनने को कहा, लेकिन प्रतिष्ठा के खयाल से वह जैनी न होकर मुडीगु ंडग्राम में वैष्णव संन्यासी हो गया । पूज्यपाद की 'कमलिनी' नामक छोटी बहिन हुई, वह 'गुणभट्ट' को ब्याही गई, और गुणभट्ट को उससे 'नागार्जुन' नामक पुत्र हुआ । पूज्यपाद ने एक बगीचे में एक सांप के मुंह में फंसे हुए मेंढक को देखा । इससे उन्हें वैराग्य हो गया और वे जैन साधु बन गये ।
पाणिनी अपना व्याकरण रच रहे थे । वह पूरा न हो पाया था कि उन्होंने अपना मरणकाल निकट आया जानकर पूज्यपाद से कहा कि इसे तुम पूरा कर दो । उन्होंने पूरा करना स्वीकार कर लिया ।
पाणिनी दुर्ध्यानवश मर कर सर्प हुए । एक बार उसने पूज्यपाद को देखकर फूत्कार किया, इस पर पूज्यपाद ने कहा, विश्वास रक्खो, मैं तुम्हारे व्याकरण को पूरा कर दूंगा । इसके बाद उन्होंने पाणिनी व्याकरण को पूरा कर दिया ।
इसके पहले वे जैनेन्द्र व्याकरण, अर्हत्प्रतिष्ठालक्षण और वैद्यक, ज्योतिष आदि के कई ग्रंथ रच चुके थे ।
गुणभट्ट ' के मर जाने से नागार्जुन अतिशय दरिद्री हो गया । पूज्यपाद ने उसे पद्मावती का एक मंत्र दिया और सिद्ध करने की विधि भी बतला दी। उसके प्रभाव से पद्मावती ने नागार्जुन के निकट प्रकट होकर उसे सिद्ध-रस की वनस्पति बताला दी ।
इस सिद्ध-रस से नागार्जुन सोना बनाने लगा । उसके गर्व का परिहार करने के लिए पूज्यपाद ने एक मामूली वनस्पति से कई घड़े सिद्ध-रस बना दिया । नागार्जुन जब पर्वतों को स्वर्णमय बनाने लगा, तब धरणेन्द्र - पद्मावती ने उसे रोका और जिनालय बनाने को कहा । तदनुसार उसने एक जिनालय बनवाया और पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की ।
पूज्यपाद पैरों में गगनगामी लेप लगा कर विदेहक्षेत्र को जाया करते थे । उस समय उनके शिष्य वज्रनन्दि ने अपने साथियों से झगड़ा करके द्राविड़ संघ की स्थापना की ।
नागार्जुन अनेक मंत्र तंत्र तथा रसादि सिद्ध करके बहुत ही प्रसिद्ध हो गया । एक बार दो सुन्दरी स्त्रियां आई जो गाने नाचने में कुशल थीं । नागार्जुन उन पर मोहित हो गया । वे वहीं रहने लगीं और कुछ समय बाद ही उसकी रसगुटिका लेकर चलती बनीं ।
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