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पूज्यपाद मुनि बहुत समय तक योगाभ्यास करते रहे । फिर एक देव - विमान में बैठकर उन्होंने अनेक तीर्थों की यात्रा की । मार्ग में एक जगह उनकी दृष्टि नष्ट हो गई थी, सो उन्होंने शान्त्यष्टक बनाकर ज्यों की त्यों करली | इसके बाद उन्होंने अपने ग्राम में आकर समाधिपूर्वक मरण किया । "2
यद्यपि उपर्युक्त कथानक अनैतिहासिक और अविश्वसनीय है, तथापि इसमें कुछ सत्यांश मौजूद है । इससे निम्न तथ्यों की सूचना मिलती है—
1. पूज्यपाद कर्णाटक प्रदेश के निवासी थे ।
इन्होंने 'व्याकरण' पर रचना की थी । यह तंत्र-मंत्र, रसविद्या और योगशास्त्र के भी उन्होंने गति प्राप्त की थी । वनस्पतियों से उनका परिचय था ।
4. नागार्जुन से पूज्यपाद का कोई संबंध था । पूज्यपाद
सीखी थी ।
2.
3.
ज्ञाता थे । चमत्कारी रसप्रयोगों में गगनगामी प्रयोग भी वे जानते थे । दिव्य
5.
से नागार्जुन ने रसविद्या
योगविद्या वे निपुण होने से योग एवं समाधि द्वारा उन्होंने देहत्याग किया था । इन तथ्यों की पुष्टि प्रकारान्तर से हो जाती है ।
'हठयोगप्रदीपिका' में पूज्यपाद
की हठयोग के प्रभाव से सिद्धि प्राप्त करने वाले 'महासिद्धों' में गणना की गई है, जो काल की सीमा लांघकर नित्य जगत् में विचरण करते हैं ।
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श्रवणबेलगोला के विन्ध्यगिरि पर्वत पर स्थित 'सिद्ध रबसति' के स्तम्भ पर सन् 1433 का शिलालेख उत्कीर्ण है । 8 उसमें निम्न श्लोक पूज्यपाद के संबंध में निर्दिष्ट है
'श्री पूज्यपादमुनिरप्रतिमोषद्धः जीयाद् विदेह जिनदर्शन पूतगात्रः । यत्पादधौतजलसंस्पर्शप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीचकार ॥'
अर्थात् पूज्यपाद मुनि को औषध ऋद्धि प्राप्त थी, उन्होंने विदेह के तीर्थंकर का दर्शन किया था और उनके चरणों के प्रक्षालन के जल के स्पर्श से 'कालायस' (लोहा) का सोने में परिवर्तन हो जाता था ।
ज्ञानसागर की तीर्थवन्दना के अनुसार पूज्यपाद का नेत्ररोग पाली नगर में 'शांतिनाथ स्तुति' की रचना से शांत हुआ था | 1
बताया जाता है कि गंगवश का राजा दुर्विनीत पूज्यपाद का शिष्य था ।
1 नाथूराम प्रेमी, जैनसाहित्य और इतिहास, पृ. 123-124
2 हठयोगप्रदीपिका, श्र. 1, श्लोक 6-9 पर इन महासिद्धों को गिनाया गया है ।
8 जैन शिलालेखसंग्रह, भाग 1, पृ. 211
4 वीरशासन के प्रभावक आचार्य, पृ. 39-40
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