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उस समय के अनेक राजवैद्यों (राजा और उसके परिवार के लिए नियुक्त वद्य) का भी उल्लेख मिलता है। इनकी आजीविका का प्रबंध राज्य की ओर से होता था, किन्तु कार्य ठीक न करने पर उसकी आजीविका बन्द कर दी जाती। एक बार किसी वैद्य को जुआ खेलने की आदत पड़ गई थी। उसके वैद्यकशास्त्र और शस्त्रकोश दोनों नष्ट हो गये, इसलिए चिकित्सा करने में वह असमर्थ हो गया। उसका वैद्यकशास्त्र किसी ने चुरा लिया था और शस्त्रकोष के शस्त्रों पर जंग (जर) लग गया था । इसलिए राजा ने उसकी आजीविका बन्द कर दी।1
किसी राजा के वैद्य की मृत्यु हो गई, उसका एक पुत्र था। राजा ने उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया। एक बार बकरी के गले में ककड़ी फंस गई। बकरी वैद्य के पास लाई गई। वैद्य ने पूछा 'यह कहां चर रही थी ?' उत्तर मिला 'बाड़े में' । वैद्य ने समझ लिया कि बकरी के गले में ककड़ी अटक गई है। उसने बकरी के गले में कपड़ा बांध कर उसे इस तरह मरोड़ा कि ककड़ी टूट गई। वैद्य का पुत्र पढ़लिखकर राजदरबार में लौटा, राजा ने समझा कि मेघावी होने के कारण वह शीघ्र विद्या सीखकर लौट आया है और उसे सम्मानपूर्वक अपने पास रख लिया । एक बार रानी को गलगण्ड हो गया. वैद्यपुत्र ने उससे वही प्रश्न किया जो उसके गुरू ने किया था और वही उत्तर मिला। वैद्यपुत्र ने रानी के गले में वस्त्र लपेट कर उसे ऐसा मरोड़ा कि वह मर गई, यह देख कर राजा को बहुत क्रोध आया और उसने वैद्य-पुत्र को दण्डित किया ।
किसी राजा को अक्षिरोग हो गया । वैद्य ने देखकर आंख में आंजने के लिए गोलियां दीं। उनके लगाने से आंख में तीव्र वेदना होती थी। परन्तु वैद्य ने पहले ही राजा से वचन ले लिया था कि वेदना होने पर भी उसे वह दण्ड न देगा।
रोगोत्पत्ति और रोगज्ञान वात, पित्त, कफ और सन्निपात से होने वाले रोगों का उल्लेख मिलता है।
रोग की उत्पत्ति के नौ कारण बताये गये हैं-1. अत्यन्त भोजन, 2. अहितकर भोजन, 3. अतिनिद्रा, 4. अतिजागरण, 5. पुरीष का निरोध, 6. मूत्र का निरोध, १. मार्गगमन, 8. भोजन की अनियमितता, 9. कामविकार । पुरीष को रोकने से
1 व्यवहार भाष्य 5123 2 बृहत्कल्प भाष्य पोठिका, 376 ॐ बृहत्कल्प भाष्य पोष्ठका 111277 4 आवश्यकचूर्णी पृ. 385, बृहत्कल्पभाष्य 314408-10
स्थानांगसूत्र 91667, (तुलना कीजिए मिलिन्द-प्रश्न' पृ. 135, इसमें रोग के दस कारण बताये गये हैं।)
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