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अध्याय-2 जैन आगम-साहित्य में आयुर्वेद-सामग्री
जैन आगम साहित्य की विवेचना संक्षेप में पहले की जा चुकी है। मूल आगम साहित्य और उसके व्याख्या-साहित्य (नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका, में आयुर्वेद सम्बन्धी विपुल सामग्री सन्निहित है। उसका यहां दिग्दर्शन-मात्र प्रस्तुत किया जा रहा है ।।
चिकित्सा 'स्थानांगसूत्र' में आयुर्वेद या चिकित्सा (तेगिच्छ, चैकित्स्य) को नौ 'पापश्रुतों' में गिना गया है। ये नौ 'पापश्रुत' इस प्रकार हैं1 उत्पात-रुधिर की वृष्टि आदि अथवा राष्ट्रोत्पात का प्रतिपादन करने वाला
शास्त्र । 2 निमित्त- अतीत काल के ज्ञान का परिचायक शास्त्र । 3 मंत्रशास्त्र । 4 आख्यायिका ( आइक्खिय)-मांतगी विद्या जिससे चांडालिनी भूतकाल की बातें
बताती है। 5 चिकित्सा (आयुर्वेद) 6 लेख आदि 72 कलाएं । 7 आवरण (वास्तु विद्या) 8 अण्णाण (अज्ञान)- भारत, काव्य, नाटक आदि लौकिक श्रुत । 9 मिच्छापवयण (मिथ्याप्रवान) बुद्ध-शासन आदि ।
‘निशीथचूर्णी' से ज्ञात होता है कि धन्वन्तरि इस शास्त्र के मूल प्रवर्तक थे । उन्होंने अपने निरंतर ज्ञान से रोगों का ज्ञान कर वैद्यकशास्त्र या आयुर्वेद की रचना की। जिन लोगों ने इस शास्त्र का अध्ययन किया, वे 'महावैद्य' कहलाये ।
आयुर्वेद के आठ अंगों (विभागों) का उल्लेख भी जैन आगम ग्रंथों में मिलता है । ये आठ विभाग हैं। कौमारभृत्य ! बालकों सम्बन्धी रोगों की चिकित्सा) । 2 शालाक्य (कर्ण आदि शरीर के ऊर्ध्वभाग अर्थात् शिर के रोगों की चिकित्सा ।
1 स्थानांगसूत्र 916178; तथा सूत्रकृतांग 221 30 ३ निशीथचूर्णी 15, पृ. 592
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