Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना
बधा ज पदार्थोमा ‘भवनं भावः' आ अद्वैत सर्वत्र अनुस्यूत छे' । पुरुषादि अद्वैतवादोनुं स्वरूप जणावीने छेवटे विधिविधिनयसंमत शब्दार्थ तथा वाक्यार्थ बतावीने अने विधिविधिनयनो संग्रहनयमां अंतर्भाव जणावीने भगवतीसूत्रमा आ नयतुं बीज क्यां रहेलुं छे ते जणाव्युं छे ।
त्रीजो विध्युभय अर त्यारपछी विध्युभय नय शरू थाय छे । आ नय द्वैतवादने माने छे, एटले प्रकृति-पुरुषरूपे द्वैतने माननारा सांख्योनो अने जगत तथा जगतना अधिष्ठाता (स्रष्टा ) ईश्वररूपे द्वैतने माननारा ईश्वरवादी
ओनो आमा समावेश थाय छ । प्रारंभमां पुरुषादि अद्वैतवादनुं विस्तारथी खंडन करीने पछी सांख्यसंमत द्वैतवादनी स्थापना छ । पछी 'पुरुषादि कारणवादमा जे दोषो छे ते ज दोषो प्रकृतिकारणवादमां पण आवीने ऊभा रहे छे' आ जातवें दोषारोपण सर्वसर्वात्मकवादी करे छ । आ प्रसंगमां सांख्योना वार्षगणतंत्रनो मत विस्तारथी जणावीने तेनुं खंडन करेलु छ । आ रीते सांख्यसंमत द्वैतवाद घटतो न होवाथी ईश्वरवादी शास्त्रकारो 'भाव्य जगत् अने तेनो अधिष्ठाता भविता ईश्वर' आ जातना द्वैतवादनी स्थापना करे छ । अंतमां आ नयसंमत शब्दार्थ तथा वाक्यार्थ वर्णवीने आ नयनो संग्रहमा अंतर्भाव बतावीने द्वैतवादनुं बीज जैनागम ग्रंथोमां क्यों रहे छे ते जणाव्युं छे ।
चोथो विधिनियम अर ___ हवे चोथो अर शरू थाय छे । एना प्रारंभमां ईश्वरवादनुं विस्तारथी खंडन छ । जगतमां सुखदुःखो दरेक प्राणीओना पोतपोताना कर्मने आधीन छे, सर्व प्राणी पोताना ईश्वर छे, जगतनो कोइ एक ज नियत आदिकर्ता ईश्वर छ ज नही वगेरे दलीलोथी सृष्टिकर्ता ईश्वरनुं खंडन कैरीने पछी कर्म एकान्तवाद तथा पुरुषकार एकान्तवादनुं पण खंडन करीने विधिनियमनये खमतनुं प्रतिपादन कयुं छे । आत्मा कर्मरूपे बने छे अने कर्म आत्मारूपे बने छे, आ रीते जगतना चेतनाचेतन सर्व पदार्थो अन्योन्यात्मकरूपे परिणमे छे । बधामा एक ज अविभक्त भवन रहेलु छे एवो आ नयनो मत छ । आ नयनो अंतर्भाव संग्रहनयमां थाय छे । आ नय द्रव्यने ज माने छ । बधा ज पदार्थों अन्योन्यात्मक होवाथी 'एकं सर्वं सर्व चैकम्' एवो आ नयनो मत छ । नित्य सर्वात्मक द्रव्य ए ज आ नयमां शब्दार्थ छे, कारण के 'ॐ ब्रह्म' ज आ नयमां परमार्थ छ । त्यारपछी वाक्यार्थ बतावीने 'जे एगणामे से बहुणामे' ए आचारांगसूत्रमा आ नयवादनुं बीज छ एम जणावीने आ नयना वर्णननी समाप्ति करी छ । अहीं पहेलो मार्ग एटले नयचक्रनी प्रथम नेमि समाप्त थाय छे अने समग्र नयचक्रनो लगभग अर्धा जेटलो भाग पण चार अरोमां आवी जाय छे तेथी चार अरने अंते 'अर्धमेकमेकपुस्तकं समाप्तम्' एवो उल्लेख नयचक्रवृत्तिनी बधी हस्तलिखित प्रतिओमा छ ।
नयचक्र मूळ विक्रमनी ११ मी शताब्दीमां थएला पूर्णतल्लगच्छीय शांतिसूरिमहाराजे न्यायावतारवार्तिकनी
१ सन्निधिभवन अने आपत्तिभवन रूपे भवनना बे प्रकार छ । प्रकृति अने पुरुष रूपे द्वैत होय तो आ बंने प्रकारनुं भवन घटी शके छे। आ रीते सांख्यमत साथे आ नयनो संबंध छे॥ २ जुओ प्राकथन पृ० २७ टि. ४-७॥ ३ जुओ प्राक्कथन पृ० २७ दि. ८-११॥
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