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प्रस्तावना
गई अने जे पाछळथी अमारा ध्यानमा आवी तेनुं परिमार्जन पण आ टिप्पणोमां अनेक स्थळे कयु छ । नयचक्र छपाया पछी जे टिबेटन ग्रन्थोनी सामग्री मळी तेना आधारे पण कचित् शुद्धि करी छे जेमके मुद्रित पृ० ३१४ पं० ४ मां 'वीतस्य वा भावः पश्चप्रदेशः' ए प्रमाणे पाठ हस्तलिखित प्रतिओमां मळे छे त्यां 'वीतस्य [ आवीतस्य ] वा भावः पञ्चप्रदेशः' एम अमे सुधायुं हतुं, पण पाछळथी टिबेटन ग्रंथोना आधारे जणायु के 'वीतस्य वाक्यभावः पञ्चप्रदेशः' एवो ज पाठ साचो छे एटले अमे टिपृ० १३८ पं० २ मां ए प्रमाणे सुधायु छे। ए प्रमाणे पृ० ३२१ पं० १६ ना पाठने अमे टिपृ० १४० पं० ८ मां टिबेटन ग्रंथने आधारे सुधार्यो छे । आ टिप्पणो विस्तृत होवाथी अने एमां विविध माहिती अनेक स्थळे होवाथी एक प्रकारनी टीका जेयां छ । दुर्लभ अने उपयोगी अनेकविध माहिती एमां छ । विशेष जिज्ञासुओए टिप्पणोनो विषयानुक्रम ज जोई लेवो । आ टिप्पणोना ज अंगरूपे १ भोटपरिशिष्ट, २ वैशेषिकसूत्रसंबंधि परिशिष्ट तथा ३ य० प्रतिपाठ परिशिष्ट एम त्रण परिशिष्टोनी योजना करेली छे। तेनी उपयोगिता तथा खरूप नीचे प्रमाणे छे
भोटपरिशिष्ट (टिपृ० ९५-१४०) ____ आ परिशिष्ट तैयार करवामां अमने अति परिश्रम पड्यो छे । दिङ्नाग बौद्ध न्यायनो पिता गणाय छ । तेथी जैन, सांख्य, न्याय, मीमांसा, बौद्ध आदि अनेक दर्शनोना प्राचीन ग्रंथोमां दिङ्नागना मतनी विस्तारथी चर्चा जोवामां आवे छे । परंतु तेणे नाना मोटा जे अनेक ग्रंथो रचेला ते लगभग बधाज ग्रंथो संस्कृत भाषामा अत्यारे नष्टप्राय थई गया होवाथी ए बधी चर्चाओनो सार समजवो अति बिकट छ। प्रमाणसमुच्चय, तेनी स्वोपज्ञवृत्ति, न्यायमुख, आलम्बनपरीक्षा वगेरे दिङ्नागना थोडाक ग्रंथोनां टिबेटन तथा चीनी भाषामां लगभग हजार वर्ष पूर्वे थएलां भाषांतरो मळे छे, तेथी ए भाषाओ शीखीने भारत, युरोप, अमेरिका, जापान आदि देशोना विद्वानो दिङ्नागना ग्रंथोनुं रहस्य समजवा माटे अनेक वर्षोथी परिश्रम करे छे, कारणके प्रमाणसमुच्चय आदि ग्रंथोनां टिबेटन भाषांतरो अत्यंत दुर्बोध अने क्लिष्ट होवाथी टिबेटन भाषाना विद्वानोने पण ए समजतां घणी मुसीबत पडे छे। नानां नानां प्रकरणोमां पोते चर्चेली छूटी-छवाई वातोने एकत्र करवा माटे, व्यवस्थित करवा माटे अने आवश्यक संस्कार आपवा माटे दिङ्नागे प्रमाणसमुच्चयनी रचना करी होवाथी ए एनो सौथी महत्त्वनो ग्रंथ गणाय छ । तेना उपर ईश्वरसेन आदि अनेक विद्वानोए टीका रची हती, परंतु ते बधामाथी अत्यारे तो जिनेन्द्रबुद्धिए रचेली विशालामलवती नामनी मात्र एक ज टीकार्नु टिबेटन भाषांतर मळे छे । नयचक्रवृत्तिनो लगभग एक षष्ठांश जेटलो भाग दिङ्नागना मतनी विचारणामां रोकायेलो छ । तेथी टिबेटन भाषा शीखीने पछी प्रमाणसमुच्चय आदि ग्रंथोनां टिबेटन भाषांतरो वांचीने एना आधारे दिङ्नागनुं मंतव्य यथावत् जाणवा माटे प्रयास करवो ए ज अमारा पासे श्रेष्ठ मार्ग हतो के जेथी नयचक्रमा आवती चर्चाओनो आशय पण बराबर समजाय अने नयचक्रवृत्तिमा आवता अनेक पाठोनी शुद्धि पण बराबर थई शके। तेथी टिबेटन भाषा शीखवानो प्रारंभ कर्यो अने परम कृपाळु पूज्यपाद गुरुदेवनी कृपाना प्रभावथी अल्प समयमां ए
१ “ प्रमाणभूताय जगद्धितैषिणे प्रणम्य शास्त्रे सुगताय तायिने । प्रमाणसिद्ध्यै खमतात् समुच्चयः करिष्यते विप्रसृतादिहैकतः॥" प्रमाणसमुच्चयः ॥ १।१॥
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