Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
८४
प्रस्तावना
Oriental Institute प्राच्यविद्यामंदिरमांथी पण आ ग्रंथनी शारदा लिपिमां लखेली एक प्रति मळी आवी छे के जेनी अमे O संज्ञा राखी छे । शारदा लिपि बहु जुदा ज प्रकारनी होय छे, गुरुदेवनी कृपाथी ए लिपि जाणीने पछी तेनी साथे P. प्रति सरखावतां 0 प्रतिमां महत्त्वत्ना जे केटलाक शुद्ध पाठो अमने मळी आव्या ते शुद्ध पाठो अलग शुद्धिपत्रकमां दर्शाव्या छे । एटले नयचक्रना टिप्पणोमां वैशेषिकसूत्र वांचती वखते वाचकोए आ भागना अंते आपेलो 'चन्द्रानन्दरचितवृत्तियुतस्य वैशेषिकसूत्रस्य अध्यायक्रमेण ). पुस्तके शुद्धपाठाः ' ए विभाग पण जोई लेवो ।
नयचक्रवृत्तिमां पांचमा अर सुधी जे वैशेषिकसूत्रो उद्धृत करवामां आव्यां छे तेनो सूत्रांक अमे उपस्कारसहित वैशेषिकसूत्र प्रमाणे आप्यो हतो, पण त्यारपछी मळेला चन्द्रानन्दरचितवृत्तिसहित वैशेषिकसूत्रमां सूत्रांक जुदो होवाथी वाचकोए एने आधारे सूत्रांक बदलीने वाचव ।
य० प्रतिपाठपरिशिष्ट ( टिपृ० १४२ - १४६ )
पूज्यपाद उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजे सात मुनिवरो साथे मळीने विक्रम संवत् १७१० मां लखेली नयचक्रवृत्तिनी प्रति के जेनी अमे य० संज्ञा राखी छे ते नयचक्रना सात अर छपाई गया त्यां सुधी मळी होती तेथी सात अर सुधीना मुद्रणमां य० प्रति उपरथीज साक्षात् किंवा परंपराए लखाएली पा० डे० लीं० वि० रं० ही ० प्रतिओनो यथायोग उपयोग कर्यो छे, आ वात अमे विस्तारथी पहेलां जणावी गया छीए । लेखकोना हाथे पा० डे० लीं० वि० २० ही० प्रतिओमां जे केटलाक पाठभेद 1 थई गया छे एमांना महत्त्वत्ना पाठभेदो अमे नयचक्रवृत्तिनी नीचे फुटनोटोमा जणान्या छे, परंतु हवे तो ए बधायनी आधारभूत य० प्रति मळी गई छे, एटले य० प्रतिमां वस्तुतः केवो पाठ छे ते जणाववा माटे ' य० प्रतिपाठ परिशिष्ट' नी योजना करी छे । उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजे लखेली नयचक्रवृत्तिनी प्रति घणी मोडी मळी होवा छतां एनो अमारा संपादनमां आ रीते अमे सम्पूर्ण उपयोग करी लीधो छे ! पारिभाषिक तथा लाक्षणिक शब्दो
आ ग्रंथमां केटलाक पारिभाषिक शब्दो आवे छे ए अमे यथावत् जाळवी राखवा काळजी राखी छे, जेमके 'बीत अने आवीत' ए हेतुप्रयोगोनां पारिभाषिक नाम छे । सांख्य ग्रंथोमां ए शब्दो खास वपराता हता, एटले सांख्य मतनो ज्यां निर्देश छे त्यां तेमज बीजा प्रसंगोमां पण 'आवीत' शब्दनो अनेकशः प्रयोग आ ग्रंथमां छे, जुओ पृ० ९ पं० १०, पृ० १८ पं. ८, पृ० ३१४ पं० १ वगेरे । वाचस्पतिमिश्र वगेरेर सांख्यग्रंथोमां 'आवीत' शब्दने स्थाने ' अवीत' शब्दनो प्रयोग कर्यो छे पण प्राचीन शब्द ' आवीत' ज हतो, एटले अर्वाचीन सांख्य ग्रंथोने अनुसरीने ' आवीत' ना स्थाने अमे 'अवीत ' सुधार्यु नथी, किन्तु नयचक्रवृत्तिनी हस्तलिखित प्रतिओमां अनेक स्थाने आवतो 'आवीत' 'आवीत ' शब्द ज अमे सर्वत्र आ ग्रंथमां जाळवी राख्यो छे । दिङ्नागे पण सांख्यमतनी चर्चामां ' आवीत' शब्द ज वापर्यो छे, जिनेन्द्रबुद्धिरचित विशाला लवती टीकामां ' आवीत' शब्दनी विशिष्ट व्याख्या पण आपेली छे. जुओ टिपृ० १३८ पं० ३, १७,१८ । कुमारिले पण 'आवीत' शब्दनो प्रयोग कर्यो छे जुओ नयचक्र पृ० ३१४ टि० २ । आ बधाने आधारे स्पष्ट जणाय छे के प्राचीन वार्षगणतंत्रमां ' आवीत' शब्दनो प्रयोग हतो |
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org