Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना
विद्यमान विशेषावश्यकभाष्यनी ताडपत्र उपर लखायेली एक प्राचीन प्रतिना अंतमां बे गौथाओ जोवामां आवे छे अने तेमां शक संवत् ५३१ मां चैत्र शुक्ल पूर्णिमाने दिवसे वलभीपुरमां बनेली कोई बाबतनो उल्लेख छ । ए जोतां विशेषावश्यकभाष्यनी रचना शक संवत् ५३१ ( एटले विक्रम संवत् ६६५) सुधीमां थई गई हती एम जणाय छे। जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचित खोपज्ञटीकामां दिङागना प्रमाणसमुच्चयना बीजा खार्थानुमान परिच्छेदनी “आप्तवादाविसंवादसामान्यादनुमानता" आ अर्धी कारिका उद्धृत करेली छे, तेमज बीजे केटलेक स्थळे पण दिङ्नागनी न्यायपरिभाषा एमां दृष्टिगोचर थाय छे । कोट्टार्यगणिरचित टीकामां पण दिङागना प्रमाणसमुच्चय तथा न्यायमुखमांथी केटलाक पाठ उद्धृत करेला छे। परंतु बन्ने य टीकामां मीमांसक विद्वान् कुमारिलना मतनुं तथा बौद्धाचार्य धर्मकीर्तिना मतनुं कई पण नाम-निशान नथी, एटले भगवान् जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण तो प्राचीन छ ज पण टीकाकार कोट्टार्यगणिवादी पण घणा प्राचीन छ । कोट्याचार्ये रचेली विशेषावश्यकभाष्यनी टीकामां धर्मकीर्तिना प्रमाणवार्तिकमांथी उद्धरणो लीधेलां छे परंतु कोट्टार्यगणिरचित टीकामां नथी, एटले 'कोडार्यगणिरचित टीका कोट्याचार्यरचित टीकाथी प्राचीन छे ए निर्विवाद छ । आ विशेषावश्यकभाष्यनी टीकामां कोट्टार्यगणिवादिमहत्तरे एक सिंहसूरिक्षमाश्रमणनो नीचे प्रमाणे उल्लेख करेलो छे-. “सिंहसूरिक्षमाश्रमणपूज्यपादास्तु
सामान्यं निर्विशेषं द्रवकठिनतयोर्वार्यदृष्टं यथा किम् ?
योन्या शून्या विशेषास्तरव इव धरामन्तरेणोदिताः के ? । किं निर्मूलप्रशाखं सुरभि खकुसुमं स्यात् प्रमाणप्रमेयम् ?
स्थित्युत्पत्तिव्ययात्म प्रभवति हि सतां प्रीतये वस्तु जैनम् ॥" . आ उल्लेख जोता अहीं निर्दिष्ट पूज्यपाद सिंहसूरिक्षमाश्रमण दार्शनिक विद्वान् छे ए नक्की छ । नयचक्रटीकाकार सिंहसूरिक्षमाश्रमण पण महादार्शनिक विद्वान् छे । अमने तो लागे छे के नयचक्रटीकाकार सिंहसूरिक्षमाश्रमण अने कोट्टार्यगणिए जेमनो निर्देश कर्यो छे ते पूज्यपाद सिंहसूरिक्षमाश्रमण एक ज व्यक्ति होवी जोईए । जो अमारी संभावना साची होय तो नयचक्रटीका उपरांत बीजा पण दार्शनिक ग्रंथनी एमणे रचना करी हशे।
नयचक्रटीकाकार सिंहमूरिक्षमाश्रमणनो समय नयचक्रटीकाकारना समय विषे कोई चोकस उल्लेख जोवामां आवतो नथी । नयचक्रटीकामां मीमांसक विद्वान् कुमारिल ना मतनुं तेम ज बौद्ध विद्वान् धर्मकीर्तिना मतनुं क्यांय नाम-निशान नथी, एटले नयचक्रटीकाकार सिंहसूरिक्षमाश्रमण कुमारिल अने धर्मकीर्तिथी पूर्वे ज थएला छ । अर्थान्तरापोहना - १ कुमारिल तथा धर्मकीर्तिना समय विषे विद्वानोमा वादविवाद चाल्या ज करे छे, पण एटलं तो नक्की छे केकुमारिले 'मीमांसाश्लोकवार्तिक'मा दिङ्नागना मतनुं विस्तारथी खंडन कर्यु छे, एटले कुमारिल दिनागनी पछी ज थएल छे। कुमारिलनुं खंडन धर्मकीर्तिए कर्यु छ। चीनी यात्री इत्सिंगे विक्रम सं० ८४८ मां लखेला भारतनी यात्राना वर्णनमा धर्मकीर्ति नो बहुमान पूर्वक उल्लेख करेलो छे, एटले ते पहेलां धर्मकीर्तिनुं अस्तित्व जणाय छे। २ कोट्टार्यगणि अने कोट्याचार्य ए बन्नेय जुदी जुदी व्यक्ति छे, ए विषे जिज्ञासुओए आत्मानंदप्रकाशना वि. सं. २००४ ना फागण मासना अंकमां मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजे लखेलो 'विशेषावश्यकमहाभाष्यस्वोपज्ञटीकार्नु अस्तित्व' ए नामनो लेख जोई लेवो ॥
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