Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना
एं अरसामा लखावी हशे एम जणाय छ । आ प्रति अमने केवी उपयोगी नीवडी छ ए अमे पहेलां जणावी गया छीए । आ प्रति जेना उपरथी लखवामां आवी हशे ते प्रति हजु सुधी क्याय जोवामां आवी नथी, तेमज आ प्रति उपरथी लखायेल कोई प्रति पण क्याय अमारा जोवामां आवी नथी, एटले आ जातनी प्रति विश्वमा एक ज छे एम धारीए छीए ।
- य०-आ प्रति न्यायविशारद न्यायाचार्य पूज्यपाद उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजे अनेक मुनिवरो साथे लखेली छे । आ ग्रंथना सात अर (मुद्रित पृ० ५५२ ) छपाई गया पछी वि० सं० २०१२ मां आ प्रति मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजने अणधारी ज मळी आवी हती अने तेमणे तरतज अमारा उपर पालीताणामां मोकली आपी हती। आ प्रति केवी रीते मळी आवी अने तेनुं केव॒ स्वरूप छे ए विषे मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजे आचार्यश्रीवल्लभसूरिस्मारकग्रंथमा 'श्रीयशोविजयोपाध्याय अने तेमणे लखेली हाथपोथी नयचक्र' ए लेखमां (पृ० १८१-१८४ ) विस्तारथी माहिती आपी छ। ए लेखमांथी उपयोगी अंशने अहीं अमे नीचे उद्धृत करीए छीए
___ "प्रस्तुत नयचक्रग्रंथ, के जे भावनगरनी श्री आत्मानंद सभा तरफथी प्रकाशित थशे तेना संशोधन माटे अमे जे अनेक प्राचीन प्रतिओ एकत्र करी हती तेमां बनारसना खरतरगच्छीय मंडलाचार्य यतिवर श्री हीराचंद्रजी महाराजना संग्रहनी अने पूज्यपाद आचार्य महाराज रंगविमलजी महाराजना संग्रहनी प्रतिओ पण सामेल छ । ए प्रतिओना अंतमा जे पुष्पिका छे ते जोतां खातरी थई हती के द्वादशारनयचक्रटीका ग्रंथनी एक प्रति पूज्यपाद न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज अने तेमना सहकारी मुनिवरोए मळीने लखी हती। आजे जाणवा-जोवामां आवेली नयचक्रटीकाग्रंथनी प्राचीनअर्वाचीन हाथपोथीओमाथी मात्र भावनगर श्रीसंघना ज्ञानभंडारनी प्रतिने बाद करतां बाकीनी बधी ज प्रतिओ ए उपाध्यायजीए लखेली प्रतिनी ज नकलो छ । आ बधी नकलो लेखकोना दोषथी एटली बधी कूट अने विकृत थई गई छे के जेथी आ ग्रंथना संशोधनमा घणी ज अगवडो उभी थाय । आ स्थितिमा प्रस्तुत ग्रंथना संशोधनमा प्रामाणिकता वधे ए माटे उपाध्यायजी महाराजे लखेली मूळ प्रतिने शोधी काढवा माटे हुं सदाय सचेत हतो, पण ते प्रति क्यांयथी मळी नहिं ।
परंतु जैन श्रीसंघना कहो, के प्रस्तुत ग्रंथना रसिक विद्वानोना कहो, के प्रस्तुत ग्रंथना संशोधन पाछळ रातदिवस अथाग परिश्रम सेवनार मुनिवरश्री जंबूविजयजीना कहो, महाभाग्योदयनुं जागी उठवू के-जेथी मारा प्रत्ये पूज्यभावभर्या मित्रभावथी वर्तता अने सदाय मारी साथे रहेता-पूज्यपाद श्री १००८
१कोडाय (कच्छ) ना भंडारमाथी मळी आवेली विक्रमसंवत् १६६२ मां लखाएली सिद्धिविनिश्चयटीकानी अत्यंत दुर्लभ प्रति पण आ महा श्रुतज्ञानरसिक आचार्य लखावेली हती, तेना अंतमां नीचे मुजब उल्लेख छ-"संवत् १६६२ वर्षे लिखितं विष्णुदासेन । श्री आर्यरक्षितगुरोः प्रसृते विशाले गच्छे लसन्मुनिकुले विधिपक्षनाम्नि । सूर सुनामधेया आसन् विशुद्धयशसो जगति प्रसिद्धाः ॥ तत्परेक( खैक ?)तरणि स्तरणिर्भवाब्धौ श्रीधर्ममूर्तिरिति सूरिवरो विभाति । सौभाग्यभाग्यमुखसद्गुणरत्नरत्नगोत्रः पवित्रचरितो महितो विनेयैः ॥[तेन ख] श्रेयसे ज्ञानभाण्डागारे लेखिते सिद्धि विनिश्चयटीका वाच्यमाना चानन्दतु। नागडागोत्रजो...गिरा । साधुः श्रीधनराजाह्वो ग्रन्थमेनमलीलिखत् ॥" पृ० ५८१॥
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