Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 1 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना
सामान्य, विशेष, सामान्यविशेषनानात्व, सत्कार्यवाद, असत्कार्यवाद वगेरेनुं भिन्न भिन्न शास्त्रोमां शास्त्रकारोए पोतानी कल्पनाथी जे प्रतिपादन करेलुं छे ते तद्दन असंगत अने निरर्थक छ । वळी बौद्ध, सांख्य आदि शास्त्रकारोए पोतानुं मंतव्य सिद्ध करवा प्रत्यक्ष प्रमाणनां पोतानी कल्पनाथी जे अलौकिक लक्षणो कल्प्यां छे ते पण तद्दन खोटां छ । आ प्रसंगमां बौद्धाचार्य दिङ्नागे कल्पेला प्रत्यक्षप्रमाणना लक्षणनुं विस्तारथी खंडन छ । ते पछी सांख्याचार्य वार्षगण्यप्रणीत तथा कणादप्रणीत प्रत्यक्षलक्षण, विधिनये खंडन कयु छ । लोकयात्रानो केम निर्वाह करवो ए ज आ नयनी दृष्टिए महत्त्वनी वात छे । जगतना सूक्ष्मस्वरूपर्नु ज्ञान प्राप्त करवू अशक्य छे अने प्राप्त थाय तो पण एजें कई फळ नथी, तेथी आ नय जगतना स्वरूप विषे अज्ञान वादने ज पसंद करे छे अने 'अमुक फळ इच्छनारे अमुक क्रिया करवी जोईए' एवां क्रियाविधायि शास्त्रोने ज आ नय सार्थक माने छे । मीमांसकोनी पण आवी विचार सरणी छे । वेदमां आवतां वाक्योमा 'अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः' वगेरे क्रियाविधायि विधिवाक्योने ज मीमांसको प्रमाणभूत गणे छे, तेथी विधिवादी तरीके मीमांसको प्रसिद्ध छ । नयचक्र तथा वृत्तिमां मीमांसकमतना समर्थनमां उद्धृत करेला 'को ह्येतद्वेद, किं वाऽनेन ज्ञातेन' इत्यादि पाठ उपरथी जणाय छे के मीमांसको जगतना स्वरूप विषे अज्ञानवादने पसंद करता हशे। तेथी आ रीते आटले अंशे मीमांसको विधिनयानुसारी होवाथी आ अरमां मीमांसकमतनुं प्रतिपादन छे, तेथी पृ० ११४ मां शब्दार्थ अने वाक्यार्थ पण मीमांसकमत प्रमाणे दर्शाव्या छे । छेवटे आ नयनो व्यवहारनयमां अंतर्भाव थाय छ। एम बतावीने पृ० ११५ मां आ विधिनयनुं बीज भगवतीसूत्रना 'आता भंते ! णाणे अण्णाणे ? गोतमा णाणे णियमा आता, आता पुण सिया णाणे सिया अण्णाणे' [१२।१०।४६८ ] आ वाक्यमा रहेलं छे, एम जणाव्युं छे ।
बीजो विधिविधि अर __ आ पछी बीजो विधिविधिनय शरू थाय छे। दरेक उत्तरोत्तरनय प्रारंभमां पूर्वपूर्वनयना मतनुं खंडन करे छे अने पछी स्वपक्षनी स्थापना करे छे, ए शैली होवाथी प्रारंभमां विधिवादी मीमांसकोनुं विस्तारथी खंडन छे, ए प्रसंगमा 'अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः' आ मीमांसादर्शनमां प्रसिद्ध वाक्यना अनेक अर्थविकल्पो करीने तेनुं विस्तारथी खण्डन करेलुं छे'। पछी विधिविधिनयना मतनी स्थापना छ । एक ज कारणमांथी नानारूपे जगतनी सृष्टि थाय छे एवं आ नयनुं मंतव्य छे, एटले आ नयना मतने अनुसरता पुरुषवाद, नियतिवाद, कालवाद, स्वभाववाद, भाववाद आदि अद्वैतवादोनो आ नयमा समावेश छ । तेमा पहेलां अज्ञानवाद(विधिनय)नु खण्डन करीने ज्ञानमय पुरुषाद्वैतवादनी स्थापना छे । वेद, उपनिषद वगेरेमां 'पुरुष एवेदं सर्वम् ' एवो जे मत छे तेनुं अहीं प्रतिपादन छे, पछी पुरुषवादनुं खण्डन करीने नियतिवादनी स्थापना छे के 'नियतिथी ज जगत चाले छे' । पछी नियतिवादनुं खंडन करीने कालवादनी स्थापना छ के 'काळ ज जगतमां बधुं करे छे' । पछी कालवादनुं खंडन करीने खभाववादनी स्थापना छे के 'स्वभावथी ज जगतनी रचना थएली छे । ते पछी स्वभाववादनुं खंडन करीने भाववादनी स्थापना छे के 'जगतना
१ जुओ पृ. ३५ पं० ४, पृ० ३६ पं० ६, ७, पृ० ११२ पं. ४, पृ० ११८ पं० १२, पृ० १३४, १७४ ॥ २ जुओ प्राकथन पृ० २७ टि. १-३॥
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