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आरंभवाले या मुहूर्तवाले कार्य करनेमें तो अधिकमहीनेको नपुंशक समान कहते हैं मगर तोभी दिनोंकीगिनती तो बरोबरलेते हैं । और निरारंभी व बिना मुहूर्त्तवाले दान, पुण्य,परोपकार,जप,तपादि कार्य करने में तो अधिक महीनेको 'पुरुषोत्तम अधिक मास' कहा है, सो बात प्रकटही है. इसलिये जैनसिद्धांतोंके हिसाबले या लौकिक शा. स्त्रोंके हिसाबसे भी अधिक महीनेको दिनोंकी गिनतीमें निषेध करते हैं,सो शास्त्रीय दृष्टिले व युक्ति प्रमाणसे या दुनियाके व्यवहारसेभी सर्वथा विरुद्ध है । इसको विशेष पाठकगण स्वयं विचार सकते हैं ९-दूसरे आषाढमें चौमासी करनेका क्या प्रयोजनहै ? ___भो देवानुप्रिय ! चौमासीप्रतिक्रमणादि पर्वकार्य ग्रीष्मऋतुपूरी होनेपर वर्षाऋतुकीआदिमें किये जाते है,और ज्येष्ठ व आषाढमें ग्रीमऋतु कही जाती है.इसलिये जब दो आषाढ होवे; तब उन दोनों आषाढमहीनोंको ग्रीष्मऋतुमें गिने जाते हैं.यह बात प्रत्यक्ष प्रमाणसे जगजाहिरही है,और जैनसिद्धांतानुसार तो दूसरे आषाढ शुदी पूर्णिमाका हमेशा क्षय होता है. इसलिये दूसरे आषाढ शुदी१४को पांच वर्षों का एक युग पूरा होताहै,उसी रोज ग्रीष्मऋतुभी पूरी होतीहै, तथा पांचवा अभिवर्द्धितवर्ष भी उसीरोज पूरा होताहै .और १ युगमें सुर्यके दक्षिणायन उत्तरायणके दशअयनभी १८३०दिनोंसे उसीदिन पूरे होतेहैं. इसलिये उसी दिन दूसरे आषाढ शुदी१४ को चौमासी प्रतिक्रमणादि कार्य करने की अनादि मर्यादा है । और प्रथम आषाढ ग्रीष्मऋतुमे होनसे वहां ग्रीष्मऋतु, युग,वर्ष,अयन, वगैरह पूरे नहीं होते, व प्रथम आषाढमें वर्षाऋतुभी शुरू नहीं होती,इसलिये प्रथ. म आषाढमें चौमासी प्रतिक्रमणादि पर्वके कार्य करने में नहीं आतेहैं और शास्त्रीय हिसाबसे श्रावण वदीरको (गुजरातदेशकी अपेक्षासे आषाढ वदी १ को) युगकी, वर्षकी और वर्षाऋतुकी शुरूआत होती है. इसलिये उसकी आदिमें और ग्रीष्मऋतुकी,वर्षकी, युगकी समाप्ति समय दूसरे आषाढके अंतमें चौमासी प्रतिक्रमणादि पर्वके कार्य करने शास्त्रोमें कहे हैं, सो युक्तियुक्तही हैं।
१० - चौमासा ४ महीनोंका या ५ महीनोंका ? देखिये-१२ महीनों का वर्ष कहा जाता है, मगर जब अधिक महीमहीना होवे तब १३ महीनोंका वर्ष कहा जाता है, इसीतरह यद्यपि चौमासा शब्द व्यवहारसे ४ महीनोंका कहा जाता है, मगर आधि.
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