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तेरापंथ की शक्ति का रहस्य १६
समाधान नहीं दे पाता, युग की नब्ज को नहीं पहचान पाता, कभी वह शक्तिशाली नहीं हो सकता। ___ पूज्य गुरुदेव युगप्रधान हैं। हमारी परंपरा में आचार्य बहुत हुए हैं। उनमें दो परंपराएं प्रसिद्ध रही हैं-वाचक परंपरा और युगप्रधान परंपरा। वाचक परंपरा के महान् आचार्य थे उमास्वाति आदि। युगप्रधान वह होता है, जो युग की भाषा को समझता है और उनकी समस्याओं का निदान करता है। पूज्य गुरुदेव ने युगप्रधान की इस परिभाषा को अपने कर्तृत्व से सार्थक किया है। __ अनुशासन बल, सिद्धान्त बल, मनोबल, अध्यात्म बल और युग की समस्या को समाधान देने का बल-ये पांच बल जिसके पास हैं, वह शक्तिशाली है। तेरापंथ को ये पांचों बल मिले हैं। वह इस अर्थ में शक्तिशाली है। हमें सिर्फ एक काम करना है कि कोरी यात्रा नहीं करनी है। हमें यह चिंतन करना है कि धर्मसंघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए स्वयं का किस प्रकार नियोजन करें। मर्यादा-महोत्सव हमारे धर्मसंघ की रीढ़ है, इसे और अधिक मजबूत बनाएं।
* पदाभिषेक से पूर्व दिया गया पहला वक्तव्य।
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